उत्तर प्रदेश की पूर्व अखिलेश यादव सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी होने की बात सामने आई है. सीएजी रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है कि गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट के काम चहेते ठेकदारों को देने के लिए अखबारों में टेंडर के विज्ञापन तक नहीं निकलवाए गए.
रिपोर्ट के मुताबिक काम में देरी की वजह से परियोजना पर लागत ढाई गुना तक बढ़ गई तो नियमों को दरकिनार कर एक एजेंसी को लाभ पहुंचाया गया. इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए अफसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और सतर्कता आयोग से जांच कराने की संस्तुति की गई है.
इतना ही नहीं विज्ञापन प्रकाशित होने के फर्जी दस्तावेज भी तैयार कराए गए. कुछ ऐसी फ़र्मों को काम दिए गए, जो उन कामों को कर पाने की योग्यता ही नहीं रखती थीं. कई फ़र्मों के डाक्यूमेंट्स तक नहीं जमा कराए गए. कई कामों के ठेके में योग्य कंपनियों की अनदेखी की गई.
प्रोजेक्ट की लागत राशि भी मनमाने तरीके से बीच में बढ़ा दी गई तो चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए काम करने की शर्तों को चुपचाप बदल दिया गया. सीएजी रिपोर्ट आज प्रयागराज में यूपी के प्रधान महालेखाकार सरित जफ़ा ने प्रेस कांफ्रेंस में पेश की.
हालांकि इस प्रोजेक्ट में गड़बड़ी की ज़्यादातर जानकारियां पहले ही सामने आ चुकी हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सार्वजनिक हुई सीएजी रिपोर्ट पर फिर से सियासी घमासान मच सकता है. यह रिपोर्ट पिछले दिनों विधानसभा में भी पेश की जा चुकी है.
सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने मार्च 2015 में 656 करोड़ लागत के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. इसके तहत चौबीस काम अलग अलग कंपनियों को ठेके पर दिए जाने थे. इन सभी कामों के टेंडर के विज्ञापन जारी होने थे, लेकिन चौबीस में से तेईस कामों के विज्ञापन प्रकाशित ही नहीं कराए गए.
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि परियोजना के अधीक्षण अभियंता की ओर से दावा किया गया कि 1188.74 करोड़ रुपये के 24 कार्यों के लिए निविदा का प्रकाशन किया गया. इसके विपरीत जनसंपर्क विभाग से संपर्क करने पर पता चला कि 662.58 करोड़ रुपये की 23 निविदाओं का कहीं प्रकाशन नहीं कराया गया. अफसरों की ओर से उपलब्ध कराए साक्ष्य कूट रचित हैं. प्रधान महालेखाकार का कहना है कि एक फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया.
उन्होंने बताया कि 516.73 करोड़ रुपये की योजना डायाफ्राम वॉल के निर्माण के लिए भी एक अयोग्य फार्म का चयन किया गया. इस संस्था को लाभ पहुंचाने के लिए एक योग्य फर्म का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया. इसी तरह से गोमती पर इंटरसेप्टिंग ट्रंक ड्रेन के निर्माण में भी एक संस्था को 10.40 करोड़ रुपये लाभ पहुंचाया गया है.
प्रधान लेखाकार ने बताया कि संस्था ने 18.84 करोड़ रुपये का रबर ब्रेन स्वयं आयात किया. इसके विपरीत विभाग की ओर से भुगतान 29.24 करोड़ रुपये का किया गया. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत लाभार्थियों के चयन, अनुदान, वित्तीय प्रबंधन, बीजों के वितरण आदि मदों में भी करोड़ों रुपये की अनियमितता की बात कही गई है.
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