धन सिंह गुर्जर: मेरठ का वह कोतवाल जिसने अंग्रेजी जुल्म के अंधेरे में क्रांति की पहली मशाल जलाई

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) क्रांति दिवस पर क्रांति धरा (मेरठ) पर मंगलवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीदों के परिजनों का सम्मान करेंगे. क्रांतिकारियों के सम्मान में पहली बार कोई सीएम मेरठ (Meerut) पहुंच रहा है. इससे पहले क्रांति दिवस के आयोजन में किसी भी मुख्यमंत्री के पहुंचने की सूचना नहीं है. सीएम योगी क्रांतिकारी नायक और 1857 की क्रांति के अग्रदूत शहीद कोतवाल धन सिंह गुर्जर (Kotwal Dhan Singh Gurjar) की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे. आइए जानते हैं कोतवाल धन सिंह गुर्जर के बारे में जिन्होंने अंग्रेजी जुल्म के अंधेरे में क्रांति की पहली मशाल जलाई थी.

मेरठ से शुरू हुए 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कोतवाल धन सिंह गुर्जर (Kotwal Dhan Singh Gurjar) का नाम प्रमुखता के साथ लिया जाता है. सही मायनों में उन्हें मई 1857 की क्रांति का जनक कहा जाता है. धन सिंह कोतवाल गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते थे और मेरठ के पांचली गांव के निवासी थे. वह मई 1857 में मेरठ की सदर कोतवाली में तैनात थे. सदर बाजार कोतवाली के कोतवाल रहते हुए धनसिंह गुर्जर ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था. धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में जेल पर हमला बोलकर चर्बीयुक्त कारतूसों को विरोध करने वाले 85 भारतीय सैनिकों समेत 836 कैदियों को छुड़ाया गया था. धन सिंह कोतवाल के आहवान पर उनके अपने गांव पांचली सहित गांव नंगला, गगोल, नूरनगर, लिसाड़ी, चुड़ियाला, डोलना आदि गांवों के हजारों लोग सदर कोतवाली में एकत्र हुए. धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में 10 मई 1857 की रात मेरठ में बनाई गई अंग्रेजों की नई जेल में बंद भारतीय सैनिकों और क्रांतिकारियों छुड़ा लिया गया और इसके बाद जेल में आग लगा दी थी.

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शाम से देर रात तक चला था कत्लेआम
धन सिंह गुर्जर ने 10 मई 1857 गदर वाले दिन अंग्रेजों के खिलाफ भड़की क्रांतिकारी आग में अग्रणी भूमिका निभाई थी. एक पूर्व योजना के तहत भारतीय विद्रोही सैनिकों तथा कोतवाल धन सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा गठित कर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था. 10 मई 1857 की शाम करीब पांच से छह बजे के बीच सदर बाजार की सशस्त्र बल पुलिस और सैनिकों ने सभी स्थानों पर एक साथ विद्रोह कर दिया था. धन सिंह कोतवाल द्वारा निर्देशित पुलिस के नेतृत्व में क्रांतिकारी भीड़ ने देर रात तक सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में अंग्रेजों का कत्लेआम किया था.

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किसान परिवार में जन्मे थे धन सिंह गुर्जर
शहीद कोतवाल धन सिंह गुर्जर का जन्म 27 नवंबर 1814 को ग्राम पांचली खुर्द में किसान परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम जोधा सिंह और माता का नाम मनभरी देवी था. उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुलिस में भर्ती हो गए. ब्रिटिश हुकूमत में मेरठ शहर के कोतवाल बने. 1857 के विद्रोह की खबर सुनकर आस-पास के ग्रामीणाें को गुप्त संदेश भिजवाकर हथियारों के साथ एकत्र किए थे. धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में जेल का फाटक तोड़कर कैदियों को बाहर निकाला और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा दिया. 10 मई 1857 को पूरे दिन क्रांति चलती रही.

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4 जुलाई 1857 को हुए थे शहीद 

क्रांतिनायक कोतवाल को अंग्रेज़ों ने पकड़कर मेरठ के एक चौराहे पर 4 जुलाई को फांसी पर लटका दिया और उनके गांव पांचली पर उसी दिन तोंपो से हमला करके गांव को नेस्तनाबूत कर दिया, 11 वर्ष से अधिक उम्र के लड़के और आदमी को या तो तोप से उड़ा दिया या फिर फाँसी पर लटका दिया गया. अंग्रेज रिसाले की अगुवाई में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे. पूरे गांव को तोपों से उड़ा दिया गया. सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई.  पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी. पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया. ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फांसी की सजा दी गई और पूरे गांव को नष्ट कर दिया.

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अंग्रेज़ों की नज़र में यह जनक्रांति एक सैनिक विद्रोह, गदर या बगावत ही हो मगर सही मायनों में यह व्यापक जनआक्रोश था जिसमें सैनिक, किसान, मज़दूर और कुछ राजे रजवाड़े भी शामिल थे. यह धार्मिक मसले पर नाराज़गी भले ही हो सैनिकों के संदर्भ में मगर किसान और मज़दूर अपनी दयनीय हालत से पीड़ित थे, और क्रोध से भरे हुए थे. जिसकी परिणति यह जनक्रांति में बदल गयी. यह सामाजिक क्रांति थी जिसे अंग्रेज़ केवल सैनिक विद्रोह के रूप में देख पाये. बाद में अनेक क्रांतिकारियों ने इस विद्रोह से ही प्रेरणा ली और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग जारी रखी. भारतीय लेखकों ने इसे गुलाम भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम कहकर सम्मानित किया. हर साल 10 मई को क्रांति दिवस के रूप में याद किया जाता है और इस जनक्रांति के क्रांतिकारियों को श्रद्धा और सम्मान से याद किया जाता है.

1857 क्रांति के 165 वर्ष

8 अप्रैल: मंडल पांडेय को फांसी
9 मई: चर्बी युक्त कारतूस का विरोध करने पर 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल
10 मई: 85 सैनिकों ने मेरठ में बगावत की
11 मई: सैनिकों ने दिल्ली पर कब्जा किया
13 मई से 31 मई: देश के कई जिलों में क्रांति

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