प्रमोद महाजन: जानिए बीजेपी के उस ‘चाणक्य’ को, जिसके कौशल के अटल जी भी थे मुरीद

आज बीजेपी में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को ‘चाणक्य’ का दर्जा दिया जाता है. अटल-आडवाणी वाली बीजेपी के दौर में ‘चाणक्य’ की ये उपाधि पार्टी के दिग्गज नेता रहे प्रमोद व्यंकटेश महाजन को दी जाती थी. प्रमोद महाजन (Pramod Mahajan) का जन्म 30 अक्टूबर, 1949 को हुआ था. आज उनकी 70वीं जन्म जयंती है. अपने सगे भाई की गोलियों का शिकार हुए प्रमोद महाजन ने 3 मई 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनका खूनी अंत भारतीय राजनीति के स्याह पक्ष का एक चेहरा है. यकायक इस पर किसी को यकीन नहीं होता कि इतने विशाल व्यक्तित्व वाले नेता को अपने सगे भाई ने मौत की नींद सुला दिया. इसकी चर्चा कर हर कोई सहज नहीं हो सकता है. इसके पीछे साजिश, प्रतिस्पर्धा, तरक्की से जलन जैसे ना जाने कितने मानवीय गुण-अवगुण छिपे हुए हैं.


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प्रमोद महाजन की हत्या करने वाले उनके भाई प्रवीण महाजन को अपने कृत्य का उम्र भर पछतावा रहा. भाई को गोली मारने के बाद प्रवीण ने सरेंडर कर दिया. 18 दिसंबर 2007 को हत्या के जुर्म में प्रवीण को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. जेल में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ. उन्हें इलाज के लिए पैरोल पर रिहा किया गया. प्रवीण की 3 मार्च 2010 को अस्पताल में मौत हो गई. एक इंटरव्यू में प्रवीण ने कहा, ‘मैंने उन्हें नहीं मारा. वह बस 15 मिनट का झगड़ा था और एक पल के गुस्से में मैंने गोली चला दी. मैं आज तक उस दिन के लिए पछताता हूं. वो मुझे प्यार से चंदू कहकर बुलाते थे. वो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे.” खैर आज आज प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन मुंबई से सांसद है. वहीं बेटे राहुल की राजनीति में रूचि न होने के कारण सिनेमा की लाइन पकड़ रखी है.


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अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी घनिष्ठ मित्रता थी. वह सदन में हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी के पीछे बैठते थे और जरूरत पड़ने पर वह अटल बिहारी वाजपेयी के कान में जरूरी बातें बताते भी थे. 2003 के विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीतिक सफलता के बाद बीजेपी के कद्दावर नेता और पार्टी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लक्ष्मण प्रमोद महाजन ने बेहद मजाकिया लहजे में कहा कि ‘पेप्सी और प्रमोद महाजन कभी अपना फॉर्मूला नहीं बताते.’


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आइये जानते हैं कौन थे प्रमोद महाजन

प्रमोद वेंकटेशन महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को तेलंगाना के महबूब नगर इलाके में एक देशहस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था. प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र के अंबाजोगाई इलाके में स्थित स्वामी रामानंद तीर्थ कॉलेज में साथ पढ़ते थे. यहीं दोनों में दोस्ती हुई. बाद में प्रमोद की प्रेरणा से गोपीनाथ भी राजनीति में आए. प्रमोद की बहन की शादी गोपीनाथ से हुई. प्रमोद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में बचपन से ही सक्रिय थे. जब वह संघ के मराठी अखबार तरुण भारत से बतौर सब एडिटर 1970 में जुड़े, तब इस सक्रियता को एक सार्थक दिशा मिल गई. 1974 में प्रमोद ने स्कूल टीचर की नौकरी छोड़कर पूरी तरह से संघ का प्रचारक बनने का फैसला किया. कुछ ही समय बाद देश में इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी. प्रमोद को नासिक जेल में डाल दिया गया. जहां से वह 1977 में रिहा हुए.


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बीजेपी के गठन के बाद संघ ने उन्हें पार्टी के काम के लिए भेज दिया. वह महाराष्ट्र में बीजेपी के महासचिव बनाए गए. इस पद पर वह 1985 तक रहे. 1983 में ही उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव भी बनाया गया. 1984 की इंदिरा सहानुभूति लहर के दौरान प्रमोद पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और खेत रहे. 1986 में प्रमोद को बीजेपी के युवा फ्रंट भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. 1990 से 1992 के बीच भी वह इस पद पर रहे.


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बीजेपी को हिंदी पट्टी में मजबूत जमीन मुहैया कराने में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा का अहम रोल था. इस यात्रा के आयोजन में नरेंद्र मोदी भी जुड़े थे और प्रमोद महाजन को भी अहम जिम्मेदारी मिली थी. प्रमोद महाजन 1986 में पहली बार संसद पहुंचे. बतौर राज्यसभा सांसद. तब से लेकर मृत्यु तक वह राज्यसभा सांसद ही रहे सिर्फ दो साल को छोड़कर जब वह लोकसभा में थे. लोकसभा चुनाव वह सिर्फ एक बार जीते. 1996 में मुंबई नॉर्थ ईस्ट सीट से. 1998 में वह यहां से चुनाव हार गए और फिर बरास्ते राज्यसभा दिल्ली पहुंचे.


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अटल बिहारी वाजपेयी की पहली 13 दिनी सरकार में प्रमोद महाजन ने बतौर रक्षा मंत्री शपथ ली थी. अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी सरकार (1998) में प्रमोद महाजन पहले प्रधानमंत्री के सलाहकार बने. फिर उन्होंने पद से इस्तीफा देकर राज्यसभा का चुनाव जीता. उसके बाद उन्हें मंत्रिमंडल में बतौर सूचना और प्रसारण मंत्री शामिल किया गया. एक साल बाद वह जल संसाधन और संसदीय कार्यमंत्री बना दिए गए. 2001 में उन्हें पिछले सरकारी नीतिगत विवादों के बीच कम्युनिकेशन मिनिस्टर बना दिया गया. उनके जिम्मे 1999 में बनाई गई परिवर्धित टेलिकॉम पॉलिसी को लागू करने का जिम्मा था. इसके तहत टेलिकॉम ऑपरेटर्स को फिक्स्ड लाइसेंस फीस के बजाय रेवेन्यू का एक हिस्सा शेयर करना था. नई पॉलिसी के बाद देश में मोबाइल फोन क्रांति आई. यह आदमी के इस्तेमाल की चीज बन गई.


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प्रमोद महाजन के रणनीतिक कौशल ने अपना आखिरी उत्कर्ष देखा दिसंबर 2003 में चार राज्यों (दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान) में हुए विधानसभा चुनावों में. महाजन का जोर था कि पार्टी परंपरागत हिंदुत्व की लाइन के बजाय विकास के मुद्दों पर आक्रामक हो वोट मांगे. दिल्ली को छोड़कर बाकी राज्यों में बीजेपी जबरदस्त जीत दर्ज कर सत्ता में आई. इसके बाद आया वह दौर, जब बकौल तमाम राजनीतिक पंडित महाजन की सबसे बड़ी हार हुई. प्रमोद को लगा कि पूरे देश में अटल बिहारी सरकार के पक्ष में मूड है. इसे भुनाने के लिए तय समय से कुछ पहले ही आम चुनाव करा लिए जाने चाहिए. अटल सरकार ने संसद को समय से कुछ महीने पहले ही भंग करने की सिफारिश कर दी.


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2004 के लोकसभा चुनावों की रणनीति का जिम्मा प्रमोद महाजन को दिया गया. फील गुड और इंडिया शाइनिंग के नारे अस्तित्व में आए. मगर पार्टी इन सबके बावजूद लोकसभा चुनाव हार गई. महाजन ने व्यक्तिगत तौर पर हार की जिम्मेदारी ली. 22 अप्रैल 2006 को प्रमोद महाजन अपने मुंबई स्थित अपार्टमेंट में परिवार के साथ थे. तभी उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन वहां आए. उन्होंने अपनी पिस्टल से प्रमोद पर चार गोलियां दागीं. पहली गोली प्रमोद को नहीं लगी. मगर बाकी तीन प्रमोद के लीवर और पैनक्रिअस में जा धंसी. उन्हें हिंदुजा अस्पताल ले जाया गया. 13 दिन के संघर्ष के बाद दिल का दौरा पड़ने से 3 मई 2006 को प्रमोद का निधन हो गया.


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आज प्रमोद महाजन भले ही न हों लेकिन बीजेपी के सूर्य उदय में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है. भाजपा के उदयकाल के लिए जो लोग केवल नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ही नायक मानते हैं वो लोग शायद प्रमोद महाजन के संघर्षों की राजनीति से रूबरू नहीं हैं. प्रमोद महाजन और अटल बिहारी की जोड़ी उस समय चर्चा में थी और उस दौर में जिस शैली में ये नेता भाषण देते थे आज की पीड़ी उनसे वंचित है.


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