सोशल: विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत प्रकृति और मानव संबंधों के बीच सहयोगी और समर्पित भाव के रूप में हुई थी। इस दिन को मनाने के पीछे प्रकृति और पर्यावरण के बीच वृहद मनुष्य समाज के संबंध रहे हैं। इनमें प्रकृति के प्रति चिंता और उसके सरंक्षण की भावना निहित है। विश्व में लगातार बढ़ते प्रदूषण और बढ़ती ग्लोबलवार्मिंग की चिंताओं के चलते विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत की गई।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वैश्विक स्तरपर पर्यावरण की चिंता करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की नींव रखी गई। इसकी शुरुआत स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई। यहां दुनिया में पहली बार पर्यावरण सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें इसमें 119 देशों ने हिस्सेदारी ली। यहीं पर पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत दिया गया।
इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)की नींव रखी गई। यहीं से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने का संकल्प लिया गया। विश्व पर्यावरण दिवस के अंतर्गत दुनियाभर के नागरिकों को पर्यावरण प्रदूषण की चिंताओं से अवगत कराने और प्रकृति और पर्यावरण को लेकर जागरूक करने उद्देश्य सामने रखे गए।
इस वैश्विक कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और राजनीतिक चेतना और वैश्विक सरकारों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता और प्रकृति और पृथ्वी के संरक्षण को केंद्र में रखते हुए दुनिया के देशों में राजनीतिक चेतना जागृत करना था। पहले पर्यावरण दिवस पर भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत की प्रकृति और पर्यावरण के प्रति चिंताओं को जाहिर किया था।
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उन्होंने वहां पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव’ विषय पर व्याख्यान देते हुए प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण को लेकर भारत की दृष्टि और प्रतिबद्धता पर अपने विचार रखे थे। भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से लागू हुआ।
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