जो पुलिसकर्मी लोगों की मदद को हमेशा तत्पर रहते हैं, कई बार वो अपने साथियों की ही मदद नहीं कर पाते. मामला मुरादाबाद जिले का है, जहाँ डेंगू से एक सिपाही की मौत हो गयी. दरअसल, सिपाही जिले में मैनाठेर थाने में तैनात था. जिसको आखिरी समय में उनके परिजन ही इलाज के लिए लेकर गए. परिजनों का आरोप है कि तीन दिन तक सिपाही थाने में था किसी ने उसका इलाज कराने की कोशिश नहीं की. अगर सिपाही को समय से इलाज मिल जाता तो शायद आज वो जिन्दा होते.
इलाज के दौरान हुई मौत
जानकारी के मुताबिक, मुरादाबाद जिले के मैनाठेर थाने में तैनात सिपाही निखिल को 13 अक्टूबर को बुखार आया था. हालत में सुधार नहीं होने पर उसने घर फोन करके भाई को हालत खराब होने की जानकारी दी. अगले दिन फिर उसने अपनी मां को हालत खराब होने के बारे में बताया. सिपाही का बड़ा भाई उसे लेने के लिए 16 अक्टूबर को मैनाठेर थाने पहुंचा तो वह बैरक में अकेला पड़ा हुआ था. बड़ा भाई उसे लेकर गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल पहुंचा. यहां जांच में डेंगू की पुष्टि हुई लेकिन, आठ हजार प्लेटलेट्स होने पर मंगलवार की सुबह छह बजे मौत हो गई.
परिजनों ने लगाया आरोप
परिजनों का आरोप है कि जब निखिल की तबियत खराब हुई तो उन्होंने उससे थाना प्रभारी से छुट्टी लेने की बात कही. पर कोई सुनवाई नहीं हुई. सिपाही के बड़े भाई ने थाना प्रभारी से भी बात की लेकिन तब भी सिपाही को छुट्टी नहीं मिली. सिपाही तीन दिन तक थाने में ही बिमाड अकेले पड़ा रहा. थाने में किसी ने उसकी खराब हालत देखने के बावजूद इलाज कराने पर ध्यान नहीं दिया. परिजनों की मानें तो यदि सिपाही को समय से इलाज मिल जाता तो शायद उनकी जान बच सकती थी.