यूपी में अब गैरजमानतीय अपराधों में भी मिल सकेगी बेल, ये हैं शर्तें

अग्रिम जमानत लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बड़ा फैसला किया. अब प्रदेश में गैरजमानतीय अपराध के मुकदमों में गिरफ़्तारी पर अग्रिम जमानत मिल सकेगी. इसके साथ ही सेशन कोर्ट को भी जमानत का अधिकार मिल गया है. इसके लिए सीआरपीसी की धारा में संशोधन किया गया है. राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद गृह विभाग ने इसका आदेश जारी कर दिया है. पिछले साल 21 अगस्त 2018 को योगी सरकार ने कैबिनेट बैठक में अग्रिम जमानत को लेकर सीआरपीसी में संशोधन को हरी झंडी दिखा दी थी.  इसके बाद विधेयक को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया था.


जमानत की इस व्यवस्था को वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान खत्म कर दिया गया था. बाद में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य राज्यों में अग्रिम जमानत की व्यवस्था बहाल कर दी गई थी. इस नए नियम के अनुसार, अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अब अभियुक्त का उपस्थित रहना जरूरी नहीं होगा. इसके अलावा जिस दौरान पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा, तब अभियुक्त को पुलिस अधिकारी या विवेचक के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा.


SC/ST एक्ट में नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत

अग्रिम जमानत की व्यवस्था एससीएसटी एक्ट समेत अन्य गंभीर अपराध के मामलों में लागू नहीं होगी. आतंकी गतिविधियों से जुड़े मामलों (अनलाफुल एक्टिविटी एक्ट 1967), आफिशियल एक्ट, नारकोटिक्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट व मौत की सजा से जुड़े मुकदमों में अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी.


30 दिन के भीतर करना होगा निस्तारण

विधेयक के तहत अग्रिम जमानत के लिए जो भी आवेदन आएंगे उनका 30 दिन के अंदर निस्तारण करना होगा. कोर्ट को अंतिम सुनवाई से सात दिन पहले नोटिस भेजना भी अनिवार्य होगा. अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में कोर्ट अभियोग की प्रकृति, गंभीरता, आवेदक के इतिहास, उसकी न्याय से भागने की प्रवृत्ति आदि पर विचार करके फैसला दिया जाएगा.


क्या है अग्रिम जमानत ?

अग्रिम जमानत से मतलब है कि अगर किसी आरोपी को पहले से आभास है कि वो किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वो गिरफ्तारी से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है. कोर्ट अगर अग्रिम जमानत दे देता है तो अगले आदेश तक आरोपी व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.


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