जानें वाल्मीकि ने ही क्यों की थी रामायण की रचना, एक ‘डाकू’ से बने महर्षि की पूरी कहानी

आश्विन माह में शरद पूर्णिमा के दिन महर्षि वाल्मीकि (Maharshi Valmiki Jayanti) का जन्म हुआ था. इस बार शरद पूर्णिमा 31 अक्तूबर को होने की वजह से उसी दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाएगी. महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषि हैं. उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की. महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञान था और वह एक कवि के रूप में भी जाने जाते हैं. विश्व का पहला महाकाव्य रामायण लिखकर उन्होंने आदि कवि होने का गौरव पाया.


महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ. इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे. वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है. उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे. एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था. साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे.


वाल्मीकि ने ही क्यों की रामयण की रचना

रामायण के मुताबिक एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के किनारे गए. यहां उन्होंने आपस में प्यार करते हुए एक क्रौंच (सारस) पक्षी के एक जोड़े को देखा. जब क्रौंच पक्षी का जोड़ा प्रेम आलाप कर रहा था तब उसी वक्त एक शिकारी ने नर पक्षी पर वार किया और उसे मार डाला. जिससे मादा पक्षी विलाप करने लगी. यह देखकर महर्षि वाल्मीकि बहुत क्रोधित हुए जिससे उनके मुंह से अचानक ही एक श्लोक (मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।) निकल पड़ा. जब वाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे तो उस वक्त भी उनका ध्यान अचानक निकले उस मंत्र पर था. तभी वाल्मीकि जी की कुटिया में ब्रह्मा जी आए और उन्होंने कहा- “आपके मुंह से जो वाक्य निकला है वह श्लोक ही है. मेरे प्रेरणा से ही अपने मुंह से ऐसा वाक्य निकला है. इसलिए आप श्लोक रूप में श्रीराम के चरित्र का वर्णन कीजिए. ” इस प्रकार ब्रह्मा जी के आदेश से प्रेरित होकर महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की.


डाकू कैसे बन गया बाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था. बचपन में उन्हें एक भील ने पकड़कर ले गया और अपने यहां उनका पालन-पोषण करने लगा. रत्नाकर जब बड़ा हुआ तो वह भी भील समाज में चल रही प्रथा के मुताबिक जीवनयापन के लिए लूटपाट काटने लगा. इन्होंने भीलों की परंपरा को अपनाया और आजीविका के लिए डाकू बन गए. अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए ये राहगीरों को लूटते थे और जरूरत पड़ने पर मार भी देते थे. इस तरह वे अपने पापों का घड़ा भर रहे थे.


एक दिन उनके जंगल के रास्ते नारद मुनि जा रहे थे तभी रत्नाकर ने उन्हें बंदी बना लिया. नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि तुम ऐसे पाप क्यों कर रहे हो. तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने और परिवार के भरण-पोषण के लिए. इसके बाद नारद ने पूछा कि जिसके लिए तुम पाप कर रहे हो क्या वह तुम्हारे पाप का भागी बनेगा. फिर रत्नाकर ने कहा कि बिल्कुल हमारे परिवार के लोग हमेशा मेरे साथ खड़े रहेंगे.


मरा-मरा से राम-राम जपने लगे

नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा कि जाओ और अपने परिवार से पूछकर आओ यदि वे हां कहेंगे तो मैं अपना सारा धन दे दूंगा. रत्नाकर अपने परिवार के सभी सदस्यों से पूछा लेकिन किसी ने भी हां नहीं कहा. तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो. इस तरह नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे. तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए.


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