मुसलमानों की तरह हिंदुओं को भी मिले धर्मस्थलों के प्रबंधन का अधिकार, SC में याचिका दाखिल

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दाखिल कर सभी धर्मों के लिए पूजा स्थलों के लिए एक समान कानून बनाने की मांग की गई है. यह याचिका बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दाखिल की है. याचिका में देशभर में हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण और इसके विपरीत कुछ अन्य समूहों को अपने संस्थानों के प्रबंधन की अनुमति होने का हवाला दिया गया है. उपाध्याय ने दलील दी गई है कि हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को भी मुस्लिमों, पारसियों और ईसाइयों की तरह अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रखरखाव का अधिकार होना चाहिए.


बता दें कि वर्तमान में हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के बड़े पूजा स्थलों पर देश की विभिन्न राज्य सरकारों का नियंत्रण होता है, जबकि मुस्लिम और ईसाई समुदाय के धार्मिक स्थलों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से धार्मिक आधार पर विभिन्न पूजा स्थलों में भेदभाव को समाप्त कर सबके लिए एक जैसा दिशा-निर्देश देने, या केंद्र सरकार को सबके लिए एक समान कानून बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है.


मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण लेकिन मस्जिदों पर नहीं

उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि अनुच्छेद 26 के तहत प्रदत्त संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार सभी समुदायों के लिए स्वाभाविक अधिकार है. लेकिन हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को इस सुविधा से वंचित किया गया है. याचिका के मुताबिक, देशभर में स्थित 9 लाख मंदिरों में से तकरीबन 4 लाख सरकारी नियंत्रण में हैं. लेकिन चर्च या मस्जिद से जुड़े एक भी धार्मिक निकाय पर सरकार का नियंत्रण या हस्तक्षेप दिखाई नहीं देता. इसी कारण हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ चंदा (एचआरसीई) अधिनियम, 1951 और समय-समय पर बनाए गए इसी तरह के अन्य कानूनों में बदलाव की जरूरत है.


मंदिरोें पर लगता सेवाकर वहीं मस्जिदों व चर्च पर नहीं

याचिका के मुताबिक, यह कानून सरकार को मंदिरों और उसकी संपत्तियों पर नियंत्रण की अनुमति प्रदान करता है. मंदिरों पर करीब 13 से 18 फीसद सेवाकर लगता है. देश में करीब 18 ऐसे राज्य हैं जिनका हिंदुओं के धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण है. जब मंदिरों पर सेवाकर लागू किया जाता है तो यह बुनियादी रूप से अपने हितों की रक्षा करने के समुदाय के अधिकार और संसाधनों को छीनना है. याचिका में कहा गया है कि मुस्लिमों और ईसाइयों की तरह हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को भी अपने धार्मिक स्थलों की चल-अचल संपत्तियों के अधिग्रहण और उनका प्रबंधन करने का अधिकार है, सरकार इसमें कटौती नहीं कर सकती.


18 राज्यों के मंदिरों पर नियंत्रण के लिए बनाए 30 से ज्यादा कानून

अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि वर्तमान में देश के 18 राज्यों ने हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के चार लाख पूजा स्थलों पर नियंत्रण कर रखा है. इन मंदिरों से होने वाली आय का एक बेहद छोटा हिस्सा इन्हें देकर शेष पूरा पैसा राज्य सरकारों के नियंत्रण में चला जाता है. लेकिन इसी बीच मुस्लिम और ईसाई धर्म के पूजा स्थलों पर किसी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है. हिंदू, जैन और सिख धर्मों के पूजा स्थलों पर नियंत्रण के लिए इन राज्यों में 30 से ज्यादा कानून बनाए गए हैं. इनके द्वारा मंदिरों की चढ़ावे से होने वाली आय, मंदिरों की संपत्ति और रखरखाव से संबंधित कानून बनाए गए हैं. जबकि अन्य धर्मों के कानूनों के लिए इसी प्रकार की बात नहीं की गई है. सुप्रीम कोर्ट में इन सभी कानूनों को चुनौती दी गई है.


अंग्रेजों ने मंदिरों को लूटने के लिए बनाया था कानून

अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 1863 में अंग्रेजों ने रिलीजियस एनडाउनमेंट्स एक्ट कानून बनाया था जिसका मुख्य उद्देश्य मंदिरों का लूटने, उनकी संपत्ति हड़पने, मंदिरों का चढ़ावा लेने और मंदिरों के नाम पर जो संपत्ति होती थी, उसपर कब्जा करना था. इसी कानून के विरोध में हमने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद राज्य सरकारों ने भी मंदिरों पर कब्जे के लिए कानून बनाए. केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और तेलांगना समेत 18 राज्यों ने ऐसे कानून बनाए. ऐसे कुल 30 कानून हैं जिन्हें हमने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है.


मंदिरों पर नियंत्रण तो अन्य धार्मिक स्थलों पर क्यों नहीं ?

उपाध्याय ने कहा कि भारत में सरकारों ने करीब 4 लाख मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले लिया है लेकिन एक भी मस्जिद, मजार, दरगाह और चर्च को नहीं लिया, केवल और केवल मंदिरों को नियंत्रण में लिया. इसीलिए ये सारे के सारे 30 कानून अवैध और असंवैधानिक हैं, बहुत जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई होगी.


समान संहिता का मसौदा हो तैयार

याचिका में कहा गया है कि मंदिरों और गुरुद्वारों की चल-अचल संपत्तियों के अधिग्रहण और प्रबंधन के लिए बनाए गए सभी कानून मनमाने और तर्कहीन हैं और अनुच्छेद 14, 15 व 26 का उल्लंघन करते हैं. लिहाजा ये शून्य और निष्‍क्र‍िय होने चाहिए. याचिका के मुताबिक अगर जरूरी हो तो अदालत केंद्र या विधि आयोग को धार्मिक एवं धर्मार्थ संस्थानों के लिए साझा चार्टर और धार्मिक एवं धर्मार्थ चंदे के लिए समान संहिता का मसौदा बनाने का निर्देश दे सकती है.


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