हाथरस केस: योगी सरकार को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान-मिडिल ईस्ट से किए गए नफरत फैलाने वाले ट्वीट, पुलिस के हाथ लगे अहम सुराग

उत्तर प्रदेश के हाथरस मामले (Hathras Case) में रविवार को जांच एजेंसियों ने बड़ा खुलासा किया है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Government) को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया के ज़रिए साजिश रची गई. देश से बाहर से हुई फंडिंग के ज़रिए मामले में झूठे, नफरत फैलाने वाले ट्वीट देश से बाहर से कराए गए. ये ट्वीट्स ज़्यादातर पाकिस्तान और मिडिल ईस्ट से किए गए. पुलिस के हाथ अहम सुराग लगे हैं.


सोशल मीडिया पर हाथरस कांड को लेकर भ्रम फैलाने के मामले में पीएफआई की संलिप्तता का पहले ही खुलासा हो चुका है. जांच कर रही एजेंसियों का दावा है कि ऐसा प्रदेश की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर बड़ी साजिश रची गई थी. घटना को जातीय हिंसा का रंग देने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से कई झूठे तथ्य प्रचारित किए गए. इसके लिए योगी सरकार को निशाना बनाते हुए बड़ी संख्या में पाकिस्तान और मध्य एशिया के देशों से ट्वीट कराए गए. पुलिस और जांच एजेंसियां अब पता लगाने में जुटी हैं कि क्या इसके पीछे भारत में सक्रिय किसी संगठन की साजिश तो नहीं थी.


ट्वीट के लिए कई गई फंडिंग

सुरक्षा एजेंसियों की पड़ताल में पता चला है कि इस गहरी साजिश के लिए बाकायदा फंडिंग की गई है. ऐसी साजिशों के हाथरस के चंदपा थाने में गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज होने के बाद सुरक्षा एजेंसियां हुईं तो बड़ी संख्या में फर्जी एकाउंट्स बंद हो गए और नफरत फैलाने वाले झूठे ट्विट हटा दिए गए. ये ट्वीट देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ बाहरी देशों से भी किए गए थे. सोशल मीडिया पर यह प्रचारित किया गया था कि लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है, उसकी जीभ काट ली गई है और हाथ-पैर तोड़ दिए गए हैं. इसमें से कई तथ्य अभी तक की जांच में गलत पाए जा चुके हैं. हालांकि मामले की जांच अब सीबीआई ने अपने हाथ में ले ली है.


इस्लामिक देशों से फंडिंग!

जांच एजेंसियों के मुताबिक, वेबसाइट के जरिए विरोध प्रदर्शन की जानकारी दी जा रही थी. इतना ही नहीं इस वेबसाइट के तार एमनेस्टी इंटरनेशनल से जुड़े होने के भी संकेत मिले हैं. इस्लामिक देशों से फंडिंग की भी जानकारी सुरक्षा एजेंसियों को मिली है. वेबसाइट में फर्ज़ी आईडी से सैकड़ों लोगों को जोड़ा गया और मदद के बहाने फंडिंग भी जुटाई गई. इतना ही नहीं कुछ नामचीन लोगों के सोशल मीडिया एकाउंट का भी इस्तेमाल किया गया. वेबसाइट बनाने में पीएफआई और एसडीपीआई की भूमिका भी सामने आ रही है.


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