अगले पांच दशक तक सत्ता में बने रहने का यह है बीजेपी का एक्शन प्लान!

लोकसभा चुनाव 2019 में प्रचार हो या उससे पहले तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अक्सर सत्ता में 50 साल के प्लान की बात कहते नजर आये हैं. बीजेपी की हालिया रणनीति पर नजर डालें तो शाह ने यह बातें यूं हीं नहीं कहीं थी. पूरे देश में 2019 के चुनावों में जाति की दीवारों को तोड़कर तकरीबन 50 फीसदी वोट पाने के बाद अब बीजेपी और संघ अगले मिशन में लग गए हैं.


बीजेपी को इस चुनाव में दलित वोटरों का खूब साथ मिला. खासकर उत्तर प्रदेश में बसपा का सपा के साथ जाने के बाद दलितों का वोट सपा के साथ साथ बड़ी संख्या में भाजपा के पाले में भी गया. ये हालात तब हैं जब पार्टी में दलित नेता के रूप में कोई चेहरा नहीं है. पार्टी ने दलितों को अपने साथ करने के लिए दलित नेताओं की खोज शुरू कर दी है.


दलितों की नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली मायावती की साख राष्ट्रीय स्तर पर लगातार कमजोर होती जा रही है, जिसका नमूना 2019 लोकसभा चुनाव के रूप में देखने को मिला. इतना ही नहीं बाकी दलित नेताओं का भी जनाधार लगातार कमजोर होता जा रहा है. ऐसे में सत्ता पर बैठी बीजेपी इस मौके को हाथों हाथ लेकर काम में लग गई है.


दलितों नेताओं की कम हो रही साख के चलते बीजेपी उस वोटबैंक को हथियाना चाहती है, इसके लिए पार्टी की रणनीति के मुताबिक एक हजार दलित वोटरों पर संघ या बीजेपी का एक प्रबुद्ध कार्यकर्ता लगाया जा रहा है. ऐसे हर कार्यकर्ता का काम एक हजार दलित वोटरों को देखना है. उसके लिए उसका हिन्दुस्तान सिर्फ उसके एक हजार दलित वोटर हैं.


बीजेपी के कार्यकर्ता एक हजार दलितों के बीच में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों की लिस्ट तैयार कर रहे हैं. विधानसभा चुनावों के दौरान ये काम भी शुरू भी हो गए हैं. अब इसके बाद उनका काम पात्रों का चयन करना है जिन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा दिलाना है. आगामी उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर इस अभियान को ज्यादा आक्रामक तरीके से चलाया जाएगा.


योजना के मुताबिक़ बीजेपी अगर अगले तीन साल तक योजना के अनुरूप कार्य कर लेती है, तो वो दिन दूर नहीं जब दलित बीजेपी का कोर वोटबैंक बन जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो जैसे कांग्रेस ने दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण वोट बैंक के सहारे इतने दिनों तक राज किया ठीक वैसे ही बीजेपी भी सत्ता पर काबिज हो जायेगी. हालांकि बीजेपी के लिए मुस्लिमों का विश्वास जीतना आसान नहीं हैं लेकिन पार्टी इसकी भरपाई दूसरी जगह से करेगी.


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