एशियन गेम्स: घर वालो का त्याग कर जीता गोल्ड मेडल, मनजीत सिंह ने रचा इतिहास

किसान परिवार में जन्मे गांव उझाना के मनजीत सिंह चहल ने जकार्ता में चल रहे एशियन गेम्स में 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। मंजीत की इस उपलब्धि पर पूरा परिवार में खुशी का महौल है। मंजीत सिंह ने इस स्वर्ण पदक के लिए बहुत मेहनत की यहां तक की उन्हें इस उपलब्धि के लिए पत्थरदिल तक बनना पड़ा, क्योंकि उन्होंने स्वर्ण पदक जीतने के लिए पांच माह पहले पैदा हुए अपने बेटे का मुंह तक नही देखा था।

 

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मंजीत की मां बिमला देवी ने बताया कि उस पर गोल्ड जीतने का जुनून इस कदर सवार था कि वह पांच माह पहले पैदा हुए अपने बेटे का मुंह देखने घर भी नहीं आया। मंजीत के स्वर्ण पदक जीतने पर पिता रणधीर चहल, मां और पत्नी सहित पूरा खुशी से झूम उठा। मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए। मां ने यहां तक कहा कि मंजीत ने दूध का कर्ज उतारते हुए देश का नाम रोशन किया है।

 

बिमला देवी ने बताया कि करीब छह महीने पहले मंजीत बेंगलुरु के ऊटी में ट्रेनिंग पर गया था, जिसके एक माह बाद ही उसके बेटे अभिर का जन्म हुआ। मगर पदक जीतने की ललक में वह परिवार से दूर रहकर तैयारियां करता रहा। इसी मेहनत के बल पर उसने 800 मीटर में स्वर्ण जीता है। अब उसके 1500 मीटर दौड़ में भी स्वर्ण पदक जीतने की आस बंध गई है। मनजीत की 29 अगस्त को हीट क्वालीफाई दौड़ है और 30 अगस्त को फाइनल दौड़ होगी।

 

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पिता रणधीर ने बताया कि मनजीत को बचपन से ही दौड़ने का जुनून रहा है। वर्ष 2000 में नवदीप स्टेडियम में एथलेटिक्स की 15 बच्चों की नर्सरी में उसका चयन हो गया था और वह 2005 तक नर्सरी में एथलेटिक्स की बारीकियां सीखता रहा। इस दौरान उसने स्कूल की प्रतियोगिताओं के दौरान अनेक मेडल भी जीते। जिससे उसका हौंसला बढ़ता ही चला गया। वर्ष 2005 में नर्सरी बंद हो जाने के कारण उसने स्पोटर्स कॉलेज, जांलधर में दाखिला ले लिया। वहां से ही उसने नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया। इसके बाद 2008 में उसका नेशनल स्तर पर स्वर्ण पदक आया, तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह 2009 में नेशनल चैपिंयन रहा। इसी प्रतिभा के आधार पर 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में उसका चयन हो गया। जिसमें वह क्वालीफाइंग हीट में 5वें स्थान पर रहा। लेकिन मनजीत के मन अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक लाने की ललक थी। इसके बाद मनजीत का एनआईएस, पटियाला में चयन हो गया और वह 2013 तक वहीं रहा। वहां उसने बारीकियां सीखकर पुणे में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में भाग लिया, लेकिन वहां भी उसको चौथे स्थान पर सब्र करना पड़ा। उन्होंने बताया कि वह पटियाला कैंप में रहा और उसके बाद म्यंमार के भूटान में ट्रेनिंग के लिए गया था। इसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर के बैंगलोर के ऊटी में प्रशिक्षण लेता रहा। यहीं से उसका चयन एशियन गेम्स के लिए 800 मीटर और 1500 मीटर में चयन हो गया। उन्होंने बताया कि उनको सबसे बड़ी खुशी है कि एक छोटे से शहर के लड़के ने विश्व पटल पर शहर और गांव का नाम रोशन कर दिया।

 

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मनजीत चहल वर्ष 2014 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए कैंप में तैयारियां कर रहा था। उसने कॉमनवेल्थ में क्वालीफाई करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी। लेकिन उसका दुर्भाग्य था कि वह 100वां सेकेंड के हिस्से पहले स्थान पर आने वाले से पिछड़ गया था। जिससे वह कॉमनवेल्थ के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाया था। मनजीत चहल अपने पिता को कहता था कि वह कॉमनवेल्थ में जरूर खेलेगा। इसलिए वह तब से अब तक कैंपों में भाग लेता रहा।

 

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