Special: जब बारात में कार ले जाने के लिए सुलखान सिंह के पास नहीं थे पैसे, पिता से बोले- बैलगाड़ियां हैं न, आपकी बहू इसी से विदा करा लाएंगे

सुलखान सिंह 1980 कैडर के यूपी के सबसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर हैं। दिलचस्प बात ये है कि डिपार्टमेंट में सुलखान की तेज-���र्रार इमेज वाली अफसर गीरी के साथ साफ-सुथरी छवि, ईमानदार और सख्त अधिकारी के तौर पर खासी चर्चा होती रही है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा आदर्श बजरंग इंटर कॉलेज बांदा से हुआ। इसके बाद इन्होंने आईआईटी रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग की। सुलखान सिंह ने लॉ की भी पढ़ाई की है। डीजीपी बनने से पहले वो पुलिस महानिदेशक प्रशिक्षण के पद पर तैनात थे।

 

1957 में साधारण परिवार में जन्में थे सुलखान सिंह

बांदा के जौहरपुर के पचासाडेरा मजरे के रहने वाले सुलखान सिंह का जन्म 1957 में साधारण किसान परिवार में हुआ था। चार भाइयों में सबसे बड़े सुलखान ने अपने कर्तव्य के आगे किसी को आने नहीं दिया। काम की बदौलत मुकाम हासिल करना उनका हुनर रहा है। आईपीएस अफसर बनने के बाद उन्होंने अपने लिए ना तो जमीन ली और न ही गांव में घर बनवाया। पिता लाखन का कहना है कि खेती करके और मवेशी पारकर बच्चों को पढ़ाया है। सुलखान सिहं का परिवार जौहरपुर में आम किसान के परिवार तरह रहता है।

 

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गांव में आज भी डीजीपी का पुराना मकान

आज भी गांव में डीजीपी का एक पुराना पक्का मकान और बगल मे एक कच्चा मकान है। सुलखान सिंह के नाम 8 बीघे जमीन है। अधिकारी बनने के बाद सुलखान सिंह घर आते थे तो सबको मेहनत से काम करने की नसीहत देते थे। अगर कोई सिफारिश करता था तो सही काम होने पर ही करते थे। गलत बात का वह समर्थन नहीं करते थे। पिता ने बताया कि वह संतोषी व्यक्ति हैं। उनको कभी भी किसी चीज का लालच नहीं रहा है।

 

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19 साल में हो गई थी सुलखान सिंह की शादी

सुलखान सिहं के गांव वाले बताते हैं कि 19 साल की उम्र में इनके पिता ने इनकी शादी तय कर दी थी।  लेकिन पैसों की तंगी के चलते वो कार बुक नहीं कर पाए। जिसका उनको मलाल था। अपने पिता को परेशान देखकर जब सुलखान सिंह ने परेशानी का कारण पूछा तो पिता ने अपनी मजबूरी बताई जिसके बाद सुलखान सिंह ने कहा कि पिता जी निराश मत होईए। अपने पास बैलगाडियां तो हैं उसी पर सवार होकर जाएंगे और आपकी बहू को विदा करा लाएंगे।

 

Sulkhan Singh

 

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कभी भी झूठ नहीं बोलते हैं सुलखान सिंह

डीजीपी सुलखान सिंह की सादगी के बारे में उनके बचपन के मित्र चतुर सिंह बताते हैं। वह बचपन से पढ़ाई लिखाई में अव्वल थे। उनकी एक बहुत अच्छी आदत थी कि वह कभी झूठ नहीं बोलते थे। और जो एक बार ठान लेते उसे पूरा कर के ही दम लेते थे। चतुर ने बताया कि वह बेहतरीन निशानेबाज भी थे। बचपन में स्कूल के पीठ गिल्ली- डंडा खूब खेलते थे।

 

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1980 में पहली बार में पास की आईपीएस की परीक्षा

1980 में पहली ही बार में आईपीएस के लिए चुने गए। साढ़े तीन दशक तक पुलिस में सेवा देने के बाद उनकी मेहनत और ईमानदारी की मिसाल दी जाती है।

 

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