धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- बहुसंख्यकों के धर्म परिवर्तन से कमजोर होता है देश, विघटनकारियों को मिलता है लाभ

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने शनिवार को अपहरण, षड्यंत्र और धर्मंतरण (Conversion) कानून के आरोपी जावेद अंसारी को लेकर अहम फैसला सुनाया है। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान प्रत्येक बालिग नागरिक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने व पंसद की शादी करने की आजादी देता है। मामले के अनुसार, जावेद उर्फ जाविद अंसारी पर इच्छा के विरुद्ध झूठ बोलकर धर्मांतरण कराकर निकाह करने का भी आरोप लगा है। आरोपी ने इन मामलों में जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी।


कोर्ट में पीड़िता बोली- उर्दू लिखे कागज पर करवाए दस्तखत


इस मामले में पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया है कि जावेद ने सादे और उर्दू में लिखे कागज पर उससे हस्ताक्षर करवाए। इतना ही नहीं, जावेद ने यह बात भी छिपाई कि वह पहले से ही शादीशुदा है और उसने झूठ बोलकर धर्म बदलवाया। पीड़िता के मुताबिक, वह 17 नवंबर 2020 की शाम पांच बजे जलेसर बाजार गई थी। तभी कुछ लोगों ने उसे जबरन गाड़ी में डाल लिया और दूसरे दिन जब उसे होश आया तो वह वकीलों की भीड़ में कड़कड़डूमा कोर्ट में थी। यहां उससे कागजों पर हस्ताक्षर लिए गए और 18 नवंबर को धर्मांतरण कराया गया। इसके बाद 28 नवंबर को निकाह किया गया।


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कोर्ट ने लगाई आरोपी जावेद को फटकार


वहीं, आरोपी जावेद ने कोर्ट में अपने पक्ष में कहा कि दोनों बालिग हैं और अपनी मर्जी से धर्म बदलकर शादी की है। इसके अलावा धर्मांतरण कानून लागू होने से पहले ही धर्म बदल लिया गया था। इस पर जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा कि संविधान सबको सम्मान से जीने का अधिकार देता है, सम्मान के लिए लोग घर छोड़ देते हैं, अपमान के लिए धर्म बदल लेते हैं। धर्म के ठेकेदारों को अपने में सुधार लाना चाहिए, क्योंकि बहुल नागरिकों के धर्म बदलने से देश कमजोर होता है।


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कोर्ट ने कहा कि विघटनकारी शक्तियों को इसका लाभ मिलता है, इतिहास गवाह है कि हम बंटे, देश पर आक्रमण हुआ और हम गुलाम हुए। सुप्रीम कोर्ट ने भी धर्म को जीवन शैली माना है। जस्टिस यादव ने कहा, आस्था व विश्वास को बांधा नहीं जा सकता, इसमें कट्टरता, भय लालच का कोई स्थान नहीं है, कोर्ट ने कहा कि शादी एक पवित्र संस्कार है, शादी के लिए धर्म बदलना शून्य व स्वीकार्य नहीं हो सकता।


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