मुकेश कुमार , संवाददाता, गोरखपुर । डेढ़ साल तक लीबिया में बंधक रहे मिथिलेश विश्वकर्मा जब बुधवार को नई दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरे, तो उन्हें लगा जैसे पुनर्जन्म हुआ हो। यातना के उन दिनों को याद कर उनकी रूह कांप जाती है। वह कहते हैं, “अब इस देश की माटी को छोड़कर कहीं जाने का ख्याल भी नहीं लाऊंगा। अपना वतन सबसे प्यारा है।”
गोरखपुर के झंगहा थाना क्षेत्र के सिंहोरवा गांव निवासी 26 वर्षीय मिथिलेश उन सात भारतीयों में शामिल हैं, जिन्हें बुधवार को वतन लौटने का सौभाग्य मिला। वह उन 19 भारतीयों में से एक थे, जिन्हें टूरिस्ट वीजा पर बुलाकर लीबिया की एक सीमेंट फैक्ट्री में बंधक बनाकर काम कराया जा रहा था। विरोध करने पर यातना दी जाती थी।
मिथिलेश ने बताया कि वह फेसबुक के जरिए झांसे में आए और 16 सितंबर 2023 को इंजन मैकेनिक के रूप में 800 अमेरिकी डॉलर मासिक वेतन के लालच में 1.20 लाख रुपये खर्च कर लीबिया की एलसीसी सीमेंट फैक्ट्री में नौकरी करने पहुंचे। वहां पहुंचते ही उन्हें मैकेनिक की जगह शौचालय की सफाई पर लगा दिया गया। अजनबी देश में विरोध करने की हिम्मत नहीं थी। पहले महीने की तनख्वाह के रूप में सिर्फ 100 डॉलर मिले और कहा गया कि बाकी पैसे बाद में मिलेंगे। इसके बाद यातनाओं का सिलसिला शुरू हो गया।
मई 2024 में जब मिथिलेश और अन्य भारतीयों ने वापसी की कोशिश की, तो उनका पासपोर्ट छीन लिया गया और एक कमरे में बंद कर दिया गया। अन्य भारतीय भी बंधक थे। अक्टूबर 2024 के पहले सप्ताह में मिथिलेश ने हिम्मत जुटाकर घरवालों को व्हाट्सएप के जरिए जानकारी दी और मीडिया तथा सरकार से मदद की गुहार लगाने को कहा।
जब ‘हिन्दुस्तान’ अखबार में खबरें छपनी शुरू हुईं, तो मामला विदेश मंत्रालय और भारतीय दूतावास तक पहुंचा। तीन लोगों की रिहाई हुई, जिससे बाकी बंधकों को उम्मीद जगी, लेकिन इसके बाद हालात और बदतर हो गए। फैक्ट्री मालिक ने उनके मोबाइल छीन लिए और बाहर निकलने पर भी रोक लगा दी।
Also read एम्स में ‘जेब्राफिश मॉडल’ से करेंगे इंसान में कैंसर का अध्ययन, रिसर्च इलाज में होगी कारगर
एक बांग्लादेशी युवक से मोबाइल मांगकर मिथिलेश ने किसी तरह घरवालों को बताया कि अब कोई उम्मीद नहीं बची। अगर जल्द कुछ नहीं हुआ तो उनकी लाश भी वापस नहीं आएगी। इसके बाद समाजसेवी तबस्सुम मंसूर ने स्थानीय प्रशासन की मदद से राहत दिलाने का प्रयास किया। ‘हिन्दुस्तान’ अखबार और समाजसेवी राजेश मणि के सहयोग से आखिरकार भारतीयों की रिहाई संभव हुई।
गुरुवार को अपने गांव लौटे मिथिलेश ने कहा कि अब वह कभी भी विदेश जाने का ख्याल तक नहीं लाएंगे। उनका कहना है, “जो कुछ बीता, वह किसी बुरे सपने से कम नहीं था। अब इस धरती को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।”


















































