तहसील से सुप्रीम कोर्ट तक पेंडिंग हैं 5 करोड़ केस, 3 साल में सभी मामलों को निपटाने के लिए SC में याचिका

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका दायर कर जजों की संख्या दोगुनी करने की मांग की गई है. यह पीआईएल भाजपा नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दायर की है. याचिका में मांग की गई है कि केंद्र, राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को उच्च न्यायालयों एवं अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने के लिए कदम उठाने और तीन साल में मामलों के निस्तारण संबंधी न्यायिक घोषणा पत्र लागू करने का निर्देश दिया जाए. उपाध्याय ने कोर्ट को यह भी बताया कि 25 उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों के कुल 1,079 पद स्वीकृत हैं और ताजा रिपोर्ट के अनुसार 414 पद रिक्त हैं.


अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका में सभी उच्च न्यायालयों, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों, केंद्रीय गृह मंत्रालय और विधि एवं न्याय मंत्रालय को पक्ष बनाया गया है. याचिका में कहा गया है कि देश में निचली अदालतों से लेकर शीर्ष अदालत में करीब पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं और उनके निस्तारण में देरी से नागरिकों के त्वरित न्याय संबंधी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.


न्याय में देरी मौलिक अधिकार का उल्लंघन

उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि सुनवाई में जान-बूझकर और अत्यधिक देरी अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. तेजी से न्याय का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, जिसे छीना नहीं जा सकता. यह जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता के अधिकार का अहम हिस्सा है. यदि निष्पक्ष एवं त्वरित न्याय नहीं मिलता है, तो न्यायिक प्रक्रिया निरर्थक है. निश्चित समय सीमा में सुनवाई और न्याय की गारंटी देने वाला न्यायिक चार्टर (क) सुनवाई से पहले अनुचित उत्पीड़न को रोकने (ख) सार्वजनिक आरोपों से जुड़ी चिंता और घबराहट को कम करने और (ग) सुनवाई में देरी के कारण आरोपी की अपना बचाव करने की क्षमता को बाधित होने की आशंका के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान करेगा.


तहसील से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक 5 करोड़ केस पेंडिंग

याचिका में कहा गया है त्वरित न्याय का अधिकार संवैधानिक अधिकार है और अनुच्छेद-21 के तहत जो जीवन का अधिकार मिला हुआ है, उसी के तहत जल्द न्याय का अधिकार मिला हुआ है. लेकिन देखा जाए तो तहसील से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं. इस तरह औसतन छह लोग अगर परिवार में हैं तो 30 करोड़ लोग किसी न किसी तरह से इन केसों के कारण आर्थिक, शारीरिक और मानसिक बोझ झेल रहे हैं. तहसीलदार, एसडीएम व एडीएम आदि के कोर्ट में 10 लाख केस इस बात को लेकर पेंडिंग है कि क्वेश्चन ऑफ लॉ क्या है?


हाई कोर्ट में 50 लाख केस पेंडिंग

याचिका में कहा गया, तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम, सीओ, एसओसी, डीडीसी के सामने 10 साल से ज्यादा पुराने मुकदमे लंबित हैं. उच्च न्यायालयों में लगभग 5 मिलियन (50 लाख) मामले लंबित हैं. उनमें से, लगभग 10 लाख मामले 10 से अधिक वर्षों से लंबित हैं और 2 लाख मामले 20 से अधिक वर्षों के लिए और तीन दशकों से भी लगभग 45,000 मामले लंबित हैं. इन नंबरों से पता चलता है कि हमारे देश की न्याय व्यवस्था दिन-प्रतिदिन धीमी होती जा रही है. इसमें एक उदाहरण का हवाला दिया जहां एक संपत्ति विवाद 35 साल से समेकन अधिकारी जौनपुर के समक्ष लंबित है और पीड़ित को 400 से अधिक तारीखें मिलीं लेकिन न्याय नहीं मिला.


शीतकालीन अवकाश के बाद सुनवाई के आसार

याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट संविधान का कस्टोडियन है और वह लॉ कमिशन की 245 वीं रिपोर्ट पर अमल कराए जिसके तहत कहा गया था कि पेंडिंग केसों का निपटारा तीन साल के भीतर होना चाहिए और इस तरह से पुराने पेंडिंग केसों का तीन साल में निपटारा किया जाए. स्पीडी जस्टिस दोनों पक्ष के लिए जरूरी है. ये मौलिक अधिकार है. जो आरोपी दोषी हैं उन्हें जल्दी सजा मिले और जो निर्दोष हैं उन्हें जल्दी बरी किया जाए ताकि उनकी गरिमा वापस हो. याचिका में कहा गया है कि निचली अदालत और हाई कोर्ट के जजों की संख्या डबल किया जाने के लिए केंद्र और राज्यों को निर्देश जारी किया जाए. इस जनहित याचिका पर शीतकालीन अवकाश के बाद सुनवाई हो सकती है.


Also Read: जौनपुर: 400 बार तारीख मिली लेकिन नहीं मिला न्याय, 35 साल से दर दर भटक रहे शिवमंदिर के पुजारी, पूर्व DGP पर है जमीन कब्जाने का आरोप


( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )