RSS चीफ मोहन भागवत के सामने श्रीरामभद्राचार्य बोले- श्रीराम जन्मभूमि लिया, ज्ञानवापी और श्रीकृष्ण जन्मभूमि भी लेंगे

बिहार (Bihar) के बक्सर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलन सह संत समागम में चित्रकूट के पीठाधीश्वर जगदगुरू रामनंदाचार्य श्रीरामभद्राचार्य जी महाराज (Shri Rambhadracharya Ji Maharaj) ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इसी बक्सर में श्रीराम ने संतों को कहा था कि आप निर्भय होकर यज्ञ कीजिए। बक्सर की यह यात्रा श्रीराम की विजय स्मृति यात्रा है। श्रीरामभद्राचार्य ने कहा कि 370 हटाया, 35 ए हटाया, हंसते हंसते श्रीराम जन्मभूमि लिया, अब ज्ञानवापी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मभूमि लेना है।

मोदी के नेतृत्व में यह हुआ संभव

उन्होंने कहा कि गोवंश की हत्या बंद हो, पाक के कब्जे में जो कश्मीर है, वह लेना है, लद्दाख का हिस्सा जो चीन में है, उसे भी वापस लेना होगा। हमारे मित्र मोदी जी के नेतृत्व में यह सब संभव है और यह सब पूरा होगा। श्रीरामभद्राचार्य ने कहा कि याचना नहीं, अब रण होगा। संतों को अब केवल राष्ट्रीय हित की बात करनी चाहिए, घर वापसी को अभियान बनाना है, हिंदुओं की संख्या घट रही है, यह चिंता का विषय है, उदारतापूर्वक हिंदू धर्म अपनाने के लिए प्रयास करना होगा।

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वहीं, वृंदावन से आए स्वामी ज्ञानानंद स्वामी ने कहा कि जिनमें राम समाए हुए हैं, वह आदर्श हैं। श्रीराम आज की प्रबल आवश्यकता हैं, पूरी मानवता के लिए उनके आदर्श, चाहे सामाजिक सद्भाव की बात हो या परिवारवाद की, आवश्यक है। श्रीराम हर समस्या का समाधान हैं।

उधर, ऋषिकेश से आए स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि बिहार राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि है, जब सोमनाथ मंदिर का शुभारंभ हो रहा था, तब वे वहां जा रहे थे, तब प्रधानमंत्री नेहरु जी ने कहा कि किसी एक धर्म को इतना प्रश्रय नहीं देना चाहिए, आपको वहां नहीं जाना चाहिए, लेकिन राजेंद्र बाबू ने कहा कि राष्ट्रपति से पहले वे हिंदू हैं और वे वहां जरूर जाएंगे।

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उन्होंने कहा कि भारत केवल अपने लिए सांस नहीं लेता, पूरे विश्व के लिए सांस लेता है। स्मार्ट फोन के जमाने में ऐसा न हो कि मां बाप भी हमारे कवरेज से बाहर हो जाएं, बच्चों को संस्कार दीजिए। हमें धरती के लिए संकल्प लेना है। सभी लोग पेड़ लगाएं, सिंगल यूज प्लास्टिक से बचें, जल का संचयन करने का संकल्प लें।

इससे पहले जीयर स्वामी जी ने आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत को श्री अनंताचार्य कहकर मंच पर संबोधन के लिए आमंत्रित किया तो जवाब में भागवत ने कहा कि यह उद्बोधन केवल संतों के लिए होता है, मैं तो स्वयंसेवक हूं।

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