जौनपुर: जिला प्रशासन की नाकामी के कारण पूर्व DGP का मंदिर की भूमि पर अवैध कब्जा बरकरार

पीड़ित का न्याय मांगना तब बेमानी लगने लगता है जब न्याय दिलाने वाली पुलिस ही उसका शोषण करने लगे. उत्तर प्रदेश के जौनपुर से एक ऐसा ही मामला सामने आ रहा है जिसके बाद से शायद पीड़ित अब न्याय की उम्मीद ही छोड़ दे. आरोप किसी सिपाही या दारोगा पर नहीं बल्कि महकमे के मुखिया यानी कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पर लगा है.


पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में डीजीपी रहे जगमोहन यादव पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ताकत का बेजा स्तेमाल कर मंदिर की जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था जो कि आज तक बरकरार है. मंदिर सम्पत्ति के प्रबंधक ने वर्तमान सरकार को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है.


जानें पूरा मामला

यह पूरा मामला समझने के लिए हमें सन 1985 में जाना पड़ेगा. जहां 06.08.1981 मछलीशहर तहसील के अंतर्गत आने वाले तरहठी (मनोरथपूर) गांव निवासी रघुवीर मिश्र पुत्र परमानन्द मिश्र अपनी करीब 7 बीघा जमीन भगवान शिव मंदिर को दान पत्र (गिफ्ट डीड) लिख कर देते हैं जिसके प्रबंधन के लिए वे विजय कुमार उपाध्याय पुत्र राजाराम उपाध्याय को नियुक्त करते हैं.


तारीख आती है 31.03.1985 और इसी दिन रघुवीर मिश्र की मृत्यु हो जाती है, वहीं मृत्यु के ठीक एक दिन बाद 01.04.1985 को पड़ोस में रहने वाले नरेन्द्र प्रसाद पुत्र रामचन्द्र तथा सुशील कुमार पुत्र राजाराम मंदिर की जमीन कब्जियाने के लिए वसीयत के फर्जी दस्तावेज बनवाते हैं जिसमें रघुवीर मिश्र की मृत्यु की तारीख 02.04.1985 दिखाते हैं. इस तरह मंदिर की पूरी संपत्ति उनके नाम हो जाती है.


मंदिर की जमीन कब्जियाने के लिए नरेंद्र प्रसाद और सुशील कुमार बेहद शातिराना ढंग से सब रजिस्ट्रार चायल तहसील इलाहाबाद जातें हैं और इसके लिए वे गवाह के तौर पर अपने गाँव के ही संगम लाल पुत्र देवता दीन का जाली अंगूठा और हस्ताक्षर करते फर्जी वसीयत बनवा लेते हैं, और 03.06.1985 नरेन्द्र प्रसाद व सुशील कुमार सहायक चकबन्दी अधिकारी जौनपुर के आदेश से रघुवीर द्वारा दान में दी गयी मंदिर की पूरी जमीन अपने नाम करवा लेते हैं.


आगे करीब दो साल बाद उपजिलाधिकारी की जांच में यह सिद्ध हो जाता है कि रघुवीर मिश्र की मृत्यु 31.03.1985 को ही हुई थी बाकी 02.04.1985 को मृत्यु के दस्तावेज फर्जी थे. इसके बाद 30.05.2008 को बन्दोबस्त अधिकारी जौनपुर द्वारा सहायक चकबन्दी अधिकारी के आदेश 03.06.1985 को रद्द करते हुये चकबन्दी अधिकारी जौनपुर के गुण दोष के आधार पर निस्तारित करने का आदेश दे देते हैं.


तारीख 15.06.2011 को विवादित हो चुकी मंदिर की जमीन को जौनपुर के ही निवासी और अखिलेश सरकार में डीजीपी रहे जगमोहन यादव कथित तौर पर शर्मीला देवी (नरेंद्र प्रसाद की पत्नी, मृत्यु के बाद मंदिर की संपत्ति में अंकित नाम) से जमीन खरीब लेते हैं. जगमोहन इस जमीन को अपने बड़े भाई बृजलाल यादव के पुत्र निशांत यादव के नाम लिखा देते हैं. बता दें कि बृजलाल उसी गांव के निवासी हैं जहाँ का यह पूरा मामला है.


जमीन विवादित थी लेकिन जगमोहन यादव की शासन और प्रशासन में पहुँच के कारण वे उस मंदिर की पूरी संपत्ति पर कब्ज़ा जमाने में कामयाब हो जाते हैं. इस अवैध कब्जे में उनके भाई सुधाकर यादव जो कि पीपीएस हैं की पहुँच का भी फायदा उठाया गया.


दूसरी तरफ मंदिर की जमीन के संरक्षक विजय कुमार उपाध्याय न्याय की लड़ाई लड़ते रहे. 04.04.2012 को चकबन्दी अधिकारी सदर जौनपुर ने मंदिर के पक्ष में आदेश पारित कर अभिलेखो में नाम दर्ज करने हेतु आदेश पारित किया, 04.04.2012 के आदेश के विरूद्ध शर्मिला एवं निशांत ने बन्दोबस्त चकबन्दी अधिकारी जौनपुर के अपील दायर किया, बन्दोबस्त अधिकारी जौनपुर ने उक्त अपील को स्वीकार करते हुये मामले को चकबंदी अधिकारी जौनपुर के यहां प्रकरण को निस्तारित करने हेतु पुन: प्रेषित कर दिया.


वर्तमान में प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ मंदिर की जमीन के इस मुकदमें में इसी साल 03 मई को फैसला विजय कुमार उपाध्याय के पक्ष में आया, पीड़ित विजय के मुताबिक़ जगमोहन यादव के दबाव में सहायक चकबंदी अधिकारी (राकेश बहादुर सिंह) म्युटेशन नहीं कर रहे हैं. 15 दिन बीतने के बाद भी कोई कार्यवाई नहीं हुई और मौजूदा प्रशासन जगमोहन यादव को स्टे लेने का मौका दे रहा है.


कौन हैं पूर्व डीजीपी जगमोहन यादव

1983 बैच के आइपीएस जगमोहन यादव साल 2015 में अखिलेश सरकार में डीजीपी नियुक्त हुए थे. उनके मात्र 6 माह के कार्यकाल में अपने बयानों और कामों को लेकर वे काफी विवादों में फंसे थे. अपने कार्यकाल में उनपर अवैध वसूली से लेकर भूमि कब्जाने के कई गंभीर आरोप लगे थे. साल 2017 में लखनऊ से आवास विकास की जमीन कब्जाने का मामला सामने आया था जिसमें भू माफियाओं की सूची में जगमोहन का भी नाम आया था, इस मामले में पूर्व डीजीपी पर गोसाईगंज थाने में एफआइआर भी दर्ज हुई थी.


साल 2017 में नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन ने जगमोहन यादव के खिलाफ अवैध वसूली मामले में जांच के लिए सीबीआई आदेश दिया था, जगमोहन पर आरोप था कि साल 2015 में जगमोहन यादव ने श्याम वनस्पति ऑयल लिमिटेड में छापा मारा था और पैसे की मांग कर रहे थे. अवैध वसूली के मामले में ह्यूमन राइट कमीशन में शिकायतकर्ता प्रत्यूष ने शिकायत की थी.



नोएडा प्राधिकरण के चर्चित चीफ इंजीनियर यादव सिंह मामले में भी जगमोहन यादव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे. 954 करोड़ रुपये के घोटाले में उस समय सीबीसीआइडी के मुखिया रहे जगमोहन ने क्लीन चिट दे दी थी. इसके बाद हुई सीबीआई जांच में जब सच सामने आया तो सबके होश उड़ गए.


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