अमेठी-रायबरेली से प्रत्याशी उतारने की तैयारी में सपा-बसपा गठबंधन, कांग्रेस से तल्खी के ये हैं कारण

लोकसभा चुनाव जितनी जैसे-जैसे करीब आ रहा हैं, सियासी पारा भी उसी के मुताबिक बढ़ रहा है. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ एकजुटता का दावा करने वाले सपा, बसपा और कांग्रेस में चुनाव से ठीक पहले सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. बुधवार को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद के बीच बुधवार को हुई मुलाकात के बाद तथाकथित महागठबंधन की सियासत गरमा गई है.



दोनों नेताओं के बीच हुई मुलाकात के बाद बुधवार शाम बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने करीब डेढ़ घंटे बैठक की. मायावती के आवास पर हुई बैठक में प्रियंका-चंद्रशेखर की मुलाकात का जवाब देने की रणनीति पर विचार किया गया. दोनों ही मुलाकातों को एक दूसरे पर दबाव बनाने की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है. सूत्रों के अनुसार, अगर कांग्रेस चुनावों में चंद्रशेखर को साथ लेती है, तो सपा-बसपा अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस पर दवाब बनाएंगे.


गठबंधन और कांग्रेस के बीच तल्खी का दूसरा सबसे बड़ा कारण बुधवार को कांग्रेस द्वारा जारी की गयी पूर्व सांसदों की वो लिस्ट है जिसके सियासी समीकरण को समझें तो कांग्रेस उम्मीदवार बसपा के वोट काटते नजर आ रहे हैं, जिसे लेकर मायावती बेहद नाराज हैं.



इस दूसरी सूची में यूपी से 16 प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं. यूपी में सपा और बसपा ने कांग्रेस को गठबंधन में शामिल नहीं किया. इसके बाद पार्टी राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण और अहम राज्य में पार्टी अब तक 27 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर चुकी है. दूसरी सूची में पार्टी ने महाराष्ट्र के भी 5 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है.


इस सूची में उन दो सांसदों के नाम शामिल हैं, जिन्होंने इस माह ही कांग्रेस की सदस्यता ली है. इनमें कैसर जहां को सीतापुर से टिकट दिया गया है जिन्हें बसपा ने निकाल दिया था जबकि सपा से आए राकेश सचान को फतेहपुर से टिकट दिया गया है. कैसर जहां और सचान दोनों ने 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी लेकिन मोदी लहर के कारण 2014 में चुनाव हार गए. इन दोनों प्रत्याशियों ने एक-दूसरे से एक दिन के अंतराल पर कांग्रेस ज्वाइन किया.


दरअसल, यूपी में कांग्रेस को गठबंधन में शामिल न करने की कई वजह हैं. इसमें एक अहम वजह है मायावती के राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई. बसपा का उदय कांग्रेस के दलित वोट बैंक के अलग होने से हुआ. पिछले तीन चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अब बसपा के सामने अपने दलित वोट बैंक को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बसपा के इस वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए तैयार हैं. तेजी से उभर रहे युवा चंद्रशेखर से भी मायावती को खतरा है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई जिलों में चंद्रशेखर ने दलित वोट बैंक में अच्छी पकड़ बनाई है. यह चुनौती भी बसपा के लिए मुंहबाए खड़ी है.


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