महाराष्ट्र के सियासी रण में चाचा-भतीजे की जोड़ी ने एक तीर से किए कई शिकार, माइंड गेम नहीं समझ सकी BJP !

जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुबह अपने फैसले में ये कहा कि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सरकार 24 घंटे में अपना बहुमत साबित करे, उसके बाद महाराष्ट्र की सियासत में सबकुछ बदलने लगा. इसके तुरंत बाद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) ने भतीजे अजीत पवार (Ajit Pawar) को फोन किया. इसके कुछ ही घंटे बाद भतीजे पवार ने फडणवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर पाला बदल लिया. इसके तुरंत बाद देवेंद्र फडणवीस को समझ में आ गया कि सियासी बिसात के मोहरे उलटे पड़ चुके हैं. लिहाजा उन्होंने भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी.


दिखने में तो ये खेल बड़ा सीधा-सीधा ही लग रहा है कि चाचा शरद पवार ने भतीजे अजित को फोन करके जैसे-जैसे मना लिया होगा लेकिन वहीं अगर हम इस घटनाक्रम के बाद परिणाम देखें कि किसके हाथ क्या आया तो तस्वीर कुछ और ही मालूम पड़ती है. जी हा! अगर इस पूरे घटनाक्रम का ठीक से विश्लेषण किया जाए तो ये समझ आता है कि इस सियासी दंगल में चाचा-भतीजे की जोड़ी ने बीजेपी समेत सभी पार्टियों को चारो खाने चित कर दिया, और इस पूरे खेल में एक बाजीगर के रूप में निकलकर सामने आए.


दरअसल, शिवसेना नेताओं की बंद कमरे में शरद पवार (Sharad Pawar) से मुलाकात हुई. शिवसेना ने अपनी चिंता तो जताई और साथ ही बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कुर्बानी देने का भी ऑफर दिया. शिवसेना ने अपनी तरफ से कहा कि वह अपनी पांच साल का मुख्यमंत्री पद की मांग छोड़ने को तैयार है. अगर शरद पवार (Sharad Pawar) चाहे और कांग्रेस को मंजूर हो तो उसे अजीत पवार को ढाई साल के लिए CM बनाने पर कोई ऐतराज नहीं है. मगर पहले ढाई साल मुख्यमंत्री, शिवसेना का होगा.


ढाई साल के लिए खुद के परिवार का CM. गठबंधन के बीच की बातचीत के बीच अगर सीधे सीधे ये मांग करते तो कांग्रेस-शिवसेना की तरफ से नानुकुर और देरी होती, साथ ही एनसीपी में अजित पवार के प्रतिद्वंदी भी शांत हो गए. अब ये सब साथ-साथ इतने आगे निकल आये हैं कि इस मुद्दे पर गठबंधन तोड़ना शिवसेना-कांग्रेस के लिए जगहंसाई के मौका होता. हाथ मिलाकर शिवसेना-कांग्रेस ने अपने वोट बैंक का पहले ही नुकसान कर लिया है, अब सत्ता से भी दूर रहना एक बेवकूफी होती.


अगर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन मिलकर दावा पेश करता तब भी पहला काम होता कि राष्ट्रपति शासन हटाना. राष्ट्रपति शासन हटाना अपने आप में एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें   बीजेपी की ‘खुशकिस्मती’ से प्रक्रिया के नाम पर राज्यपाल और केंद्र सरकार हफ्तों या दो महीने तक का वक्त तक खींच सकते थे. इस लम्बे वक्त में बीजेपी बहुत सारे विधायकों को अपनी तरफ कर सकती थी. नामुमकिन को मुमकिन बनाने वाले हालिया राजनीतिक इतिहास को देखते हुए ये कोई असंभव कृत्य नहीं था. बीजेपी की सरकार बन रही थी और एक्सप्रेस गति से काम हुआ. यानी राष्ट्रपति शासन हटाने का रोड़ा अपने आप निकल गया.


बीजेपी ने अजीत पवार पर भ्रष्टाचार के कई सारे आरोप लगाए थे. बीजेपी शिवसेना की सरकार में उनके खिलाफ मामले भी दर्ज हुए. मगर, बीजेपी के अजीत पवार के साथ हाथ मिलाने और उपमुख्यमंत्री बनाने के बाद, अब आगे बीजेपी ने अजीत पवार को भ्रष्टाचारी बताकर हमला करने का नैतिक अधिकार लगभग खो दिया है. यही हाल शिवसेना के साथ होगा जो कभी अजित पवार को भ्रष्टाचारी बताती थी, उसके लिए अब अजित पवार स्वीकार योग्य हो गए.


अजित पवार इस मास्टर स्ट्रोक के बाद एनसीपी में निर्विरोध नेता बन गए. एनसीपी के अंदर भी अजित पवार को कई सारे अन्य नेता जैसे छगन भुजबल, जयंत पाटिल, दिलीप वलसे पाटिल जैसे नेताओं से कड़ी चुनौती मिल रही थी. अजित पवार का कद बढ़ा और पार्टी में प्रभाव. शरद पवार (Sharad Pawar) की इच्छा की केंद्र में बेटी सुप्रिया और राज्य में भतीजा अजित के जरिये सब प्रभुत्व पवार परिवार में ही रहता.


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