आखिर राजस्थान से क्यों गया ‘राजे का राज’

राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी की हार के लिए एंटी इंकमबेंसी से ज्यादा वसुंधरा राजे को जिम्मेदार माना जा रहा है। गौरव यात्रा के दौरान वसुंधरा अपनी उपलब्धियां गिनाती रहीं लेकिन जनता उदास नजर आई। वसुंधरा राजे ने अपनी ही पार्टी के सीनीयर नेताओं को नाराज कर परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। घनश्याम तिवाड़ी के पार्टी छोड़ने के पीछे भी वसुंधरा राजे को बड़ी वजह माना गया। घनश्याम तिवाड़ी ने अपनी अलग पार्टी का गठन किया और कहा कि रानी का घमंड भाजपा को उखाड़ फेंकेगा, वही हुआ।

 

अमित शाह से जनाधार वाले नेताओं ने की थी राजे की शिकायत

बताया जाता है कि घनश्याम तिवाड़ी सरीखे कई वरिष्ठ और जनाधार वाले नेताओं ने जब राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने सभी की शिकायत को जायज ठहराते हुए वसुंधरा के खिलाफ कोई भी कदम उठाने ने साफ मना कर दिया।

 

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वहीं, राजस्थान में यह भी कानाफुसी हुई कि पीएम मोदी और अमित शाह दोनों ही चाहते थे कि वसुंधरा हार जाएं, इसलिए टिकट बंटवारे में सिर्फ राजे की चली।

 

आम जनता और कार्यकर्ताओं तक को नहीं देती थीं समय

यह भी बात सामने आई कि वसुंधरा राजे को लेकर आम लोगों में नाराजगी इस बात की थी कि वो सिर्फ जयपुर की रानी हैं, वहीं बैठती हैं और चापलूसों से घिरी रहती हैं। वहीं, संगठन के कार्यकर्ताओं से मिलना तो दूर की बात, कई वरिष्ठ लोगों को बेइज्जत करके राजे के दरबार से लौटा दिया गया।

 

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वसुंधरा राजे के पास लोगों से मिलने का वक्त नहीं था, जगह-जगह लाभार्थी सम्मेलन का आयोजन करना भी उल्टे नमक छिड़कने का काम कर गया। बताया जा रहा है कि भामाशाह जैसी योजनाओं से जिन लोगों को लाभ हुआ उन्हें चुनाव का हथियार बनाया गया जिसे लेकर लोगों में काफी रोष दिखा।

 

जनता के दिल से उतर गईं थी राजे

ऐसा नहीं है कि सरकारें काम नहीं करती, काम होता है लेकिन वसुंधरा राजे को ऐसा लगने लगा था कि वो जनता के हित में काम कर उनपर ऐहसान कर रही हैं। कहा जाता है कि चुनाव में जीत हासिल करना किसी एग्जाम में पास होने जैसा होता है और सत्ता में वापसी करने के लिए काम के अलावा लोगों के दिल में जगह बनाने का हुनर बहुत मायने रखता है।

 

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राजनीतिक विश्लेषज्ञ कहते हैं कि शायद सत्ता का अहंकार ऐसा होता है कि वसुंधरा राजे जैसे दिग्गज नेता भी इतनी सरल और अच्छी बात भूल जाते हैं लेकिन जनता जनार्दन हर पांच साल बाद ये सबक सत्ता के मद में चूर नेता को सीखाने के लिए तैयार रहती है।

 

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