OPINION: दस लाख हत्या, हजारों बलात्कार, कमजोर कांग्रेस नेतृत्व भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार

आज 14 अगस्त है, और देशभर में ‘विभाजन विभाषिका स्मृति दिवस’ मनाया जा रहा है. यह दिवस उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में मनाया जाता है, जिनको भारत-पाकिस्तान के बंटवारे (India Pakistan Partition) के कारण संघर्ष करना पड़ा और अपनी जान गंवानी पड़ी. दोस्तों भारत की आजादी के साथ ही भारत का बंटवारा हुआ और लाखों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ा. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और करोड़ों लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए. हममें से अधिककर लोग भारत-पाकिस्तान बंटवारे के कारण लोगों की कितनी तकलीफ उठानी पड़ी थी, इस बात से अनजान है.


धर्म के आधार पर किए गए बंटवारे के कारण करीब डेढ़ करोड़ लोगों को अपने घर, गाँव और ज़मीन से बेदखल होना पड़ा. उन्हें दूसरी जगह जाकर वापस से अपनी जिन्दगी शुरू करना पड़ी. लाखों हिंदू और सिख परिवारों को अपनी सम्पत्ति पाकिस्तान में छोड़कर भारत आना पड़ा जबकि भारत के लाखों मुस्लिमों को अपनी सम्पत्ति छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा. बंटवारे के साथ ही दोनों देशों में दंगे फसाद शुरू हो गए. जो लोग एक देश से दूसरे देश जा रहे थे उन पर भी हमले होने शुरू हो गए. हज़ारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और कम उम्र लड़कियों का अपहरण किया गया. इस बंटवारे में दोनों तरफ से लगभग दस लाख लोग मारे गए थे. करोड़ो लोग बेघर हो गए.


वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा भारत में की जाने वाली हर आतंकी गतिविधि के उपरांत पूछा जाता है कि क्या है समस्या का स्थाई हल? यह सुनना चाहे किसी को अप्रिय लगे, कोई इससे असहमत हो परंतु यह सच्चाई और अब तक का अनुभव भी है कि पाकिस्तानी समस्या का कोई स्थाई हल नहीं है. कारण है मुस्लिम लीग की अम्मा कहे जाने वाली वह हिंदू विरोधी मानसिकता जिसके चलते पाक जैसी नापाक संतान का जन्म हुआ. विभाजन के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा, आर्य समाज, सनातन धर्म सभा, अनेक राष्ट्रनिष्ठ संगठनों, इनके नेताओं सहित संत-महात्माओं ने चेताया था कि कांग्रेस जिस बंटवारे को सैटल्ड फैक्ट बता रही है वह स्थाई समस्या बनने जा रहा है. इन संगठनों के नेताओं को कुर्सी की भूख न थी और न ही सत्ता की जल्दबाजी बल्कि ये इतिहास से सीख ले कर चेता रहे थे कि पाकिस्तान की मांग केवल अंधहिंदू विरोध के चलते की जा रही है. इस मांग के पीछे कोई तर्कसंगत तथ्य नहीं थे बल्कि अल्पसंख्यक मुसलमानों को हिंदुओं को दिखाया जा रहा केवल काल्पनिक भय था.


राष्ट्रवादी नेता जानते थे कि देश में हिंदू विरोधी मानसिकता तो है परंतु अभी वह बिखरी व असंगठित है. अगर इसी मानसिकता को एक राष्ट्र दे दिया जाता है तो उसे न केवल संगठित होने का अवसर प्राप्त होगा बल्कि वैधानिक दर्जा भी मिल जाएगा. पिछले 71 सालों का इतिहास साक्षी है कि यह चेतावनी सत्य साबित हुई. आज उस हिंदू विरोधी मानसिकता के पास पाकिस्तान नामक देश, राष्ट्रीय संप्रभूता, शक्तिशाली सरकार, अपना संविधान, संगठित प्रशासन, सशस्त्र सेना-पुलिस, परमाणु हथियार, संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता व वैश्विक मान्यता है. इतनी शक्तियां होने के बाद हिंदू विरोधी विचारधारा किस प्रकार से उस राष्ट्र को चैन से बैठने दे सकती है जिसमें 80 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की हो. यही कारण है कि चार-चार युद्धों में मुंह की खाने, बंगलादेश के रूप में विभाजन करवाने, 95 हजार सैनिकों के आत्मसमर्पण करने, पूरी दुनिया में अलग थलग पड़ने, बर्बादी के कगार पर पहुंचने के बावजूद आज भी पाकिस्तान का पूरा प्रयास रहता है कि किस तरह से हिंदुस्तान को परेशान किया जाए. जम्मू-कश्मीर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में समय-समय पर होने वाली आतंकी गतिविधियां इसका प्रमाण हैं कि हिंदू विरोधी मानसिकता निरंतर क्रियाशील है, इसमें कमी या तेजी आती रहती है परंतु स्वतंत्रता के बाद इसका क्रम निरंतर जारी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी ने कांग्रेस को आगाह किया था कि वह मुस्लिम लीग की प्रत्यक्ष कार्यवाही से भयाक्रांत न हो, समाज इस झटके को सहन कर लेगा परंतु देश का विभाजन हो गया तो वह भयंकर भूल होगी. इतिहास साक्षी है कि कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व नहीं माना, हिंदू विरोधी मानसिकता को थाली में परोस कर दे दिया पाकिस्तान और भारतीयों को अश्वथामा जैसी मर्मांतक पीड़ा जिसे आज हम सहन कर रहे हैं.


वास्तव में पाकिस्तान कोई राष्ट्र न हो कर भारत में सदियों से आ रहे लुटेरे हमलावरों का स्तंभ है. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह कहा करते थे कि पाकिस्तान की नींव उसी दिन पड़ गई थी जब मोहम्मद बिन कासिम (पहले मुस्लिम हमलावर) ने भारत में आकर किसी पहले हिंदू को मुसलमान बनाया. आक्रांताओं ने इस विजयस्तंभ की नींव रखी और दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व ने इसका शिलान्यास किया. कांग्रेस को किसी तरह का अधिकार नहीं था कि वह देश का विभाजन करे. उसके हाथ में सिंध के राजा दाहिर, दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोबिंद सिंह जी सहित समस्त गुरुओं, छत्रपति शिवाजी, बाजीराव पेशवा जैसे असंख्य योद्धाओं, करोड़ों बलिदानियों के नेतृत्व में पिछले 1200 सालों से लड़े जा रहे स्वतंत्रता संग्राम की बागडोर थी.


साल 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद स्वयं अंग्रेजों ने समय सीमा तय कर दी थी कि वे जून 1948 तक भारत को छोड़ कर चले जाएंगे तो ऐसे में देश की अखण्डता की कीमत पर लंगड़ी आजादी प्राप्त करने की क्या जरूरत थी? स्वतंत्रता को कुछ महीने टाल दिया जाता तो स्वाभाविक है कि देश का विभाजन होना ही नहीं था. क्या कांग्रेसी नेता सत्ता की मिलाई के लिए कुछ महीनों की प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे? कई कांग्रेसी बंधू यह कहते नहीं अघाते कि मुस्लिम लीग द्वारा प्रत्यक्ष कार्रवाई के रूप में छेड़ा जाने वाला गृहयुद्ध टालने के लिए बंटवारे की शर्त को माना गया तो क्या वह जवाब देंगे कि आशंकित गृहयुद्ध से अधिक लोग तो विभाजन के बाद इधर-उधर आते जाते लोग मारे गए. क्या प्रत्यक्ष कार्रवाई में इतने लोग मारे जाते? संभवत: नहीं क्योंकि हर समाज में स्वत: संतुलन की क्षमता होती है और अंग्रेज सरकार न भी चाहे तो भी समाज खुद इन दंगाईयों से निपट लेता. पर हाय! ऐसा कुछ नहीं हो पाया और देश बंट गया और दे गया अश्वथामा सरीखा दर्द. प्रारंभ में पूछा गया था कि आखिर इस दर्द की दवा क्या है? तो इसका उत्तर है जैसे विध्वंस का जवाब है निर्माण उसी तरह विभाजन का उत्तर है एकीकरण. जिस दिन भारत का अप्राकृतिक विभाजन समाप्त हो जाएगा तो हमें विभाजन रूपी अश्वत्थामा के जख्मों की मलहम भी मिल जाएगी. देश की कौन सी पीढ़ी इस महारोग की चिकित्सक बनेगी फिलहाल इसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी.


(राकेश सैन, लेखक राजनीतिक जानकार हैं, यह लेख उनका निजी विचार है)


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