17 गोलियां खाकर भी योगेंद्र करते रहे, देश की रक्षा

 

 

कारगिल युद्ध 20 मई 1999 को शुरू हुआ तो मेरठ के रणबांकुरे भी इसमें आहुति देते गए। देश के रणबांकुरों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों पर फतह शुरू की तो मेरठ शहर और आसपास के गांवों के लोग भी दिल से इस युद्ध में शामिल हो गए। जब-जब मेरठ कैंट से फौजियों की टोलियां कारगिल के लिए निकलीं तब तब भारी भीड़ ने पुष्प वर्षा की। नौनिहालों से लेकर बुजुर्गों तक कैंट से निकलने वाली सड़कों पर तिरंगा लेकर खड़े हो गए।

 

 

 

त्याग और वीरता की मिसाल भारतीय फौज हर युद्ध में कायम करती आई है। कारगिल युद्ध में सेना का मनोबल ऊंचा रखने में मेरठ के लोगों का भी कम योगदान न रहा। पूर्व सैनिक संगठन के जिलाध्यक्ष मेजर राजपाल सिंह कहते हैं कि इसी मनोबल के बूते कारगिल युद्ध में दुर्गम परिस्थितयों में सेना के जवानों ने वीरता का अद्भुत प्रदर्शन किया। कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों पर भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को धराशाई कर दिया।

 

 

 

युद्ध के दौरान मेरठ में ऐसा माहौल बना था कि हर शख्स की नजर टीवी और अखबारों पर लगी रहती थी। जैसे-जैसे सेना की टोलियां कारगिल की तरफ निकलतीं सेना पर लोग फूल बरसाने निकल पड़ते। कारगिल युद्ध में मेरठ के कई रणबांकुरे उस तिरंगे को लिपट कर लौटे जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने खाई थी। जिस राष्ट्र ध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुकता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।

 

 

 

मुजफ्फरनगर की गांधी कॉलोनी में 29 अगस्त 1969 को जन्मे मेजर मनोज तलवार 11 जून 1999 को 19 हजार फीट ऊंची चोटी टूरटोक लद्दाख में सैनिकों का नेतृत्व करते हुए ऊपर चढ़े थे। चोटी से पाक सेना बम बरसा रही थी, लेकिन मेजर के कदम नहीं डगमगाए। 13 जून को उन्होंने चोटी पर तिरंगा लहराया और वीरगति को प्राप्त हो गए। कारगिल में मनोज की शहादत के बाद जब उनका शव यहां लाया गया तो पूरा शहर ही उनके अंतिम दर्शन को उमड़ा। मेजर तलवार के पिता मेरठ में रहते हैं।  देश की रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर जांबाज योगेंद्र 17 दुश्मनों को मौत के घाट उतारकर शहीद हो गए थे। देश के अमर शहीद ने अपने जान की कुर्बानी देकर क्षेत्र ही नहीं देश का नाम रोशन किया है। कारगिल विजय दिवस पर शहीद योगेंद्र यादव के शहीद स्थल पर उनकी प्रतिमा पर

 

 

 

हस्तिनापुर के पाली गांव में जांबाज सिपाही योगेंद्र का जन्म रामफल यादव की पत्नी शकुंतला देवी की कोख से एक मई 1970 को हुआ था। देश सेवा का जज्बा लिए योगेंद्र यादव मात्र 18 वर्ष की आयु में ही ग्रेनेड बटालियान में वर्ष 1988 में भर्ती हो गए थे। वे अपनी बटालियन के साथ पांच जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। परंतु उन्होंने बहादुरी के साथ 17 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था। जब उनका पार्थिव शरीर यहां पहुंचा तो क्षेत्र के लोगों ने शामिल होकर उनको गमगीन और नम आंखों से अंतिम विदाई दी।

 

देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करेंआप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )