आखिर कौन लेगा सड़कों के मरम्मत की जिम्मेदारी ?

12 जुलाई के प्राइम टाइम में जब हम सहरसा मधेपुरा नेशनल हाईवे 107 की बात कर रहे थे तब अमरीका के न्यू जरसी में दिवाकर भी प्राइम टाइम देखते हुए अपने ज़िले की सड़क को याद कर सिहर उठे. दिवाकर ने तुरंत मुझे मैसेज किया उनके होमटाउन भागलुर से कहलगांव के बीच नेशनल हाईवे 80 का हाल बहुत बुरा है. जब भी मैं अमरीका से गांव जाता हूं, 30 किमी का सफ़र पूरा करने में छह छह घंटे लग जाते हैं. हाईवे पूरी तरह जाम रहता है. न्यूयॉर्क से सटा है न्यू जरसी जहां काफी भारतीय रहते हैं अब अगर वहां से भी लोग बैठकर अपने शहर के हाईवे की ख़राब हालत की चिन्ता में दुबले हो रहे हैं तो यह ठीक नहीं है. यह भी सही है कि भागलपुर कहलगांव एन एच 80 की हालत खराब है इसका पता मुझे भी दिवाकर का मैसेज पढ़ने के बाद चला. मैं तो दूर रहता हूं और दिवाकर मुझसे भी दूर लेकिन भागलपुर, कहलगांव में रहने वाले लाखों लोगों ने आवाज़ क्यों नहीं उठाई कि सड़क जर्जर हो चुकी है. उन्होंने इस ख़राब सड़क को अपने डेली रुटीन का हिस्सा क्यों बनाया.

हज़ारों लोग इस सड़क से चलते हैं अगर उनकी नज़र के बाद भी हाईवे की हालत में कई साल से सुधार नहीं है तो फिर एक मतलब तो निकाला ही जा सकता है कि सिस्टम को लोगों का लिहाज़ नहीं रहा. जिस तरह से लोग किसी चीज़ के सुधरने के लिए दस-दस साल इंतज़ार कर लेते हैं और उसी तरह सिस्टम भी दस बीस साल नहीं सुधरने का सब्र कर लेता है. जैसे कि ये हाईवे. 12 जुलाई के टेलिग्राफ में गौतम सरकार की रिपोर्ट है कि इस हाईवे पर इतना जाम रहता है कि स्कूल जाने वाले बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ने लगा है. इसके लिए बच्चे मुख्य सड़क छोड़ कर रेलवे लाइन के किनारे किनारे जाते हैं जहां उनका अनुभव अच्छा नहीं होता है. इनके मां बाप को नहीं पता किससे शिकायत करें और शिकायत करने से होता भी क्या है. 2016 में भागलपुर स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया था.

नेशनल हाईवे 80 भागलपुर से पीरपैंती तक जाता है. हमारे सहयोगी अजय कुमार ने बताया कि भागलपुर से कहलगांव 30 किमी है लेकिन इतनी सी दूरी तय करने में आधा दर्ज़न घंटे लग जाते हैं. कारण आप देख रहे हैं कि सड़क पर ओवरलोडिंग वाले भारी वाहनों का उत्पात मचा रहता है. इनके कारण सड़क भी टूटती है और सड़क टूटने के बाद ओवरलोडिंग वाले वाहन टूट जाते हैं. जिसके कारण जाम की स्थिति लगातार बनी रहती है. बिहार कॉलेज आफ इंजीनियरिंग और सेंट्रल जेल के बाहर नाना प्रकार के गड्ढे बन गए हैं. अजय कुमार भागलपुर कचहरी से लेकर सबौर, लैलक, एक्यारी, घोघा तक करीब 25 किमी गए, बता रहे हैं कि सड़क काफी जर्जर है. इस सड़क से 10,000 ट्रक रोज़ गुज़रते हैं. झारखंड से गिट्टी लादकर बिहार के दूसरे हिस्से में इसी रास्ते से पहुंचाया जाता है. कई बार दिन में इतनी धूल उड़ती है कि अंधेरा छा जाता है और फेफड़े पर भी खराब असर करता है. लोग सड़क छोड़ ट्रेन से जाने लगे हैं. बीच-बीच में सड़क की मरम्मत होती है मगर टूट जाता है. एक बाईपास बनकर तैयार है मगर मुआवाज़ा नहीं बंटने के कारण उसका उद्घाटन नहीं हो रहा है. ऐसा कई मीडिया रिपोर्ट में ज़िक्र हुआ है. इस हाईवे को लेकर बीजेपी के स्थानीय नेता भी शिकायत करते हैं और यहां से राजद सांसद बुलो मंडल ने बताया कि वे कई महीनों से लिख कर दे रहे हैं मगर इस सड़क की सुध लेने वाला कोई नहीं है. बूलो मंडल ने 12 जुलाई को भागलपुर में इस सड़क की हालत में सुधार को लेकर प्रदर्शन भी किया था. धिक्कार यात्रा निकाली. रैली का वीडियो देखकर लग रहा है कि सड़क के टूटने से दस बीस लोगों को ही समस्या है बाकी को फर्क नहीं पड़ता है. समस्या और समाधान का काम सब आउटसोर्स कर दिया गया है.

कम संसाधनों का असर हमारे काम पर भी पड़ जाता है. दूर दराज़ के इलाकों तक पहुंचना और उसी दिन आप तक पहुंचा देना आसान नहीं है. फिर भी कोशिश कामयाब हो गई और हम आपको छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के एनएच 34 की तस्वीर दिखा सकेंगे. 2016 में एनएच 34 पत्थलगांव जोड़ने वाली सड़क के निर्माण के लिए चेन्नई की एक कंपनी को ठेका दिया गया. 95 किमी सड़क का निर्माण होना था जिसकी लागत 400 करोड़ से अधिक बताई गई थी. 2018 में इस काम को पूरा हो जाना था मगर तस्वीरें बता रही हैं कि दूर दराज़ के इलाकों के लोग किन परेशानियों से गुज़र रहे हैं. उनकी परेशानियां इतनी अर्जेंट भी नहीं हैं कि लोग ट्विटर पर ट्रेंड कराकर राहत पहुंचाने में लग जाएं. इस सड़क निर्माण से जुड़े कुछ लोगों ने बताया कि अक्टूबर 2018 तक बन जाना था मगर एक दो प्रतिशत भी काम नहीं हुआ है. एनएच 33 गुमला से कटनी जो मनेंदरगढ़, बैकुंठपुर, सूरजपुर, अंबिकापुर, जसपुर, बलरामपुर जैसे कई ज़िलों से यह सड़क गुज़रती है. हमने छत्तीसगढ़ के पीडब्ल्यूडी मंत्री से बात करने का काफी प्रयास किया मगर उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिससे यह समझ में आता कि आखिर समस्या क्या है. मंत्री राजेश मूणत कहते हैं कि वे खुद तीन-तीन बार मुख्यमंत्री के पास जा चुके हैं. उन्हें इस बात का दुख है कि इस सड़क को लेकर सवाल क्यों किया जा रहा है, 90 फीसदी जो काम हुआ है तारीफ क्यों हो रही है. मगर मूणत जी यह भी कहते हैं कि जिस एजेंसी को इस सड़क का काम मिला है वो एजेंसी ही गड़बड़ है.

ऐसा नहीं है कि सड़कें नहीं बन रही हैं या अच्छी नहीं हैं मगर कई जगहों पर सड़कों का इतना बुरा हाल है कि लोगों को भी समझ नहीं आता कि इतनी देरी क्यों. कई गांवों और कस्बों में सड़क निर्माण संघर्ष समिति बनी है. लोग भी अपने गांव की सड़क का हाल अपनी तस्वीरों के ज़रिए हमें बता रहे हैं. ये वो तस्वीरें हैं जो 90 फीसदी काम में या ऐतिहासिक काम का हिस्सा नहीं बन सके हैं.

यह तस्वीर मध्य प्रदेश के बाल कृष्ण ढोके ने भेजी है. हरदा ज़िले के झुड़गांव की यह सड़क किसी प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का इंतज़ार कर रही है. बाल कृष्ण ने लिखा है कि हमारा गांव झुड़गांव हरदा मगरधा मुख्य मार्ग से डेढ़ किमी अंदर है. ग्राम बरखेरी से झुड़गांव तक मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना तक दो साल पहले स्वीकृत हुआ है जिसमें केवर अभी बजरी का काम हुआ है. समय के साथ गड्ढे का आकार बढ़ता जा रहा है. अब ग्रामवासियों के लिए केवल यही एक रोड है जिसके माध्यम से हम मुख्यमार्ग से जुड़ते हैं. बच्चे स्कूल जाते वक्त फिसल जाते हैं और उनका यूनिफार्म गंदा हो जाता है. बारिश के दिनों में कई दिनों तक इसी कीचड़ में निकलना होता है. हमारे पास प्रशासन का कोई पक्ष नहीं है, लेकिन नागरिक ने जो हाल बताया है प्रशासन चाहे तो सड़क बनाकर उसे राहत दे सकता है.

गांव के लोगों को पता है कि दिल्ली का मीडिया नहीं आएगा. ज़िला संस्करण में ख़बरें छप जाती हैं मगर उनका असर नहीं होता है. हम भी नहीं गए मगर लोगों ने अपने गांव की सड़क का हाल हम तक पहुंचा दिया. बिहार के शेखपुरा ज़िले के कैथमा गांव के लोगों ने बाकायदा म्यूज़िक के साथ वीडियो बनाकर भेजा है. हमने म्यूज़िक बदल कर अपना संगीत लगा दिया है ताकि कापीराइट का उल्लंघन नहीं हो.

गांव के बाहर लोगों ने यह पोस्टर लगा दिया है जिस पर लिखा है कि गांधी जी का ग्राम स्वराज खो गया है. भारत के इस गांव में लोकतंत्र नहीं पहुंचा है. यह गांव भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का स्वागत नहीं कर सकता. सड़क नहीं, पानी नहीं, नाली नहीं. जन प्रतिनिधियों से भी कहा गया मगर 15 साल से सड़क नहीं बनी है. अब आप इनके बनाए वीडियो को देखिए. जो काम हमें करना चाहिए वो काम ये लोग कर रहे हैं. इतना वीडियो बन गया मगर उसका भी असर नहीं हो रहा है.

मुंबई से हमारे सहयोगी सुनील सिंह ने एक रिपोर्ट फाइल की है कि मुंबई और आस-पास के इलाके में बारिश तो तीन दिनों से बंद है मगर सड़कों पर जो गड्ढे हैं वो अब दिखाई नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनमें पानी भरा है. किसी को गहराई का अंदाज़ा नहीं मिलता है लिहाज़ा उसमें गिरने के कारण दुर्घटना भी हो रही है और मौत भी.

शुक्रवार की सुबह कल्याण के पास के रहने वाले कल्पेश जाधव की स्कूटी गड्ढे में जैसे फिसली, पीछे से आ रहे ट्रक ने कुचल दिया. 26 साल का कल्पेश काम के बाद घर जा रहा था कि गांधारी पुल के पास उसकी स्कूटी फिसल गई. कल्याण में सड़क पर बने गड्ढों की वजह से इस बारिश में 5 लोग मर गए हैं. इसके पहले कल्याण शिवाजी चौक, हाजी मलंग रोड, भिवंडी कल्याण बायपास पर गड्ढों की वजह से 4 हादसे में 4 लोग मारे जा चुके हैं. आम आदमी की जान की कीमत कुछ नहीं तभी किसी को फर्क नहीं पड़ता है. गड्ढे बने रहते हैं जब तक कोई आंदोलन नहीं करता, चिट्ठी पत्री अखबार टीवी नहीं करता, किसी को ध्यान नहीं रहता कि इन्हें भर देना चाहिए, किसी की जान जा सकती है. महाराष्ट्र के मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने बताया है कि बारिश के कारण सड़क दुर्घटना में 1 जून से लेकर अभी तक 62 लोगों की मौत हो चुकी है. 63 जानवरों की भी मौत हुई है.

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