यूपी: ऐसे IPS जो रात 2 बजे तक सुनते थे जनता की समस्याएं, कभी नहीं मानी नेताओं और रसूखदारों की सिफारिश

उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास में कई पुलिस अधिकारियों की जांबाजी के किस्से और कहानियां हैं, जो अनकही हैं। इनमें से ही एक हैं आईपीएस एचएस बलवारिया, जो अपराध के राजनीतिकरण और राजनीति के अपराधीकरण के विरोधी थे। आईपीएस एचएस बलवारिया को पीड़ितों को तत्काल मदद देने और अपराधियों के प्रति सख्त रवैये के लिए जाना जाता है।


बच्चे के अपहरण की बात सुन परेशान हो गए थे आईपीएस

आईपीएस एचएस बलवारिया ने अपनी तैनाती के दौरान किसी भी अपराधी के लिए नेताओं या फिर रसूखदारों की सिफारिश कभी नहीं सुनी। बताया जाता है कि साल 2002 में लखनऊ जोन के आईजी पद पर तैनाती के दौरान उन्होंने राजनीतिक संरक्षण वाले कई बदमाशों को सलाखों के पीछे पहुंचाया।


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आज जब पुलिस अधिकारियों के पास दिन में भी जनता की समस्याएं सुनने का वक्त नहीं है, आईपीएस एचएस बलवारिया सुबह से रात तक उनके लिए उपलब्ध रहते थे। कई बार उन्होंने रात दो बजे भी पीड़ितों-फरियादियों की बात सुनकर कार्रवाई कराई। लखनऊ में तैनाती के दौरान रात एक बजे उनके कैंप कार्यालय में कुछ लोग पहुंचे और गांव से बच्चे को उठाकर ले जाने की शिकायत की।


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ऐसे में एचएस बलवारिया ने तत्काल प्रभाव से पुलिस टीम गठित कर अपराधियों को पकड़कर बच्चे की सकुशल बरामदगी के आदेश दिए। बताया जाता है कि सुबह जब तक बच्चा बरामद नहीं हो गया, आईपीएस एचएस बलवारिया चैन से नहीं बैठे। आईपीएस एचएस बलवारिया रात को नौ बजे खाना खाने के बाद फोर्स लेकर पूरे जिले में व्यवस्थाएं देखने निकलते थे। बाजारों, सिनेमाघरों, मेला स्थलों पर रुककर शोहदों की जमकर क्लास लेते थे।


पान की गुमटी वाले से लेकर जूता पॉलिश करने वाले थे मुखबिर

जानकारी के मुताबिक, बलवारिया ने अपनी तैनाती के पहले ही दिन पुलिसकर्मियों को सक्रिय अपराधियों को सजा दिलवाने, गवाहों की सुरक्षा करने और जनता से जुड़ने का मंत्र दिया। उनके कुर्सी संभालते ही अपराधी जमानतें तुड़वाकर जेल चले जाते थे या फिर संबंधित थानों की पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती थीं। सजा कम न हो या मुकदमा छूट न जाए, इसके लिए वह गवाहों और साक्ष्यों की रक्षा सुनिश्चित करते थे।


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जनता से जुड़कर अपराधियों की सूचनाएं लेने के लिए उन्होंने सिपाही से लेकर अधिकारी तक को सक्रिय कर रखा था। इलाके की पान की गुमटियां, पीसीओ संचालक, चाय-समोसे के ठेले-खोमचे से लेकर जूता पॉलिश करने वाले और फेरीवाले उनके मुखबिर हुआ करते थे।


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