अटॉर्नी जनरल ने SC से कहा- 1000 साल से SC/ST जो भुगत रहे हैं, उसे संतुलित करने के लिए आरक्षण दिया गया है

 

SC/ST कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई शुरु की. सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ को केंद्र सरकार ने शुक्रवार को बताया कि 2006 में नागराज मामले में आया फैसला ST/SC कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने में बाधा डाल रहा है,लिहाजा इस फैसले पर फिर से विचार की ज़रूरत है।

 

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तों पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा कि 2006 में आए इस फैसले में कहा गया था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले ये साबित करना होगा कि सेवा में SC/ST का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना होगा।

 

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि SC/ST समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा रहा है और SC/ST में पिछड़ेपन को साबित करने की ज़रूरत नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 1000 साल से SC/ST जो भुगत रहे है, उसे संतुलित करने के लिए SC/ST को आरक्षण दिया है, ये लोग आज भी उत्पीड़न के शिकार हो रहे है.मामले की अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी।

 

केंद्र ने एम नागराज फैसले पर उठाए सवाल-

2006 के एम नागराज फैसले पर सवाल उठाते हुए अटॉनी जनरल ने कहा कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है. आप SC/ST को नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को कैसे साबित करेंगे। क्या ये हर पद के लिए होगा? क्या पूरे विभाग के लिए होगा। ये सारे फैक्टर कैसे निर्धारित होंगे. अटॉर्नी जनरल ने बताया कि सरकार SC/ST समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों में 22.5 फीसदी पदों पर प्रमोशन में रिजर्वेशन चाहती है, केवल यही संख्या नौकरियों में उनके वाजिब प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कर सकती।

 

 

क्या है एम नागराज का फैसला-

सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एम. नागराज को लेकर फैसला दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा सरकारी नौकरियों की पदोन्नतियों में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं की जा सकती, जैसा अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर को लेकर पहले के दो फैसलों 1992 के इंद्रा साहनी व अन्य बनाम केंद्र सरकार (मंडल आयोग फैसला) और 2005 के ईवी चिन्नैय्या बनाम आंध्र प्रदेश के फैसले में कहा गया था।