हैप्पी आगे-आगे और बाकी पीछे-पीछे। लेकिन हैप्पी कौन? एक असली और दूसरी उसकी हमनाम। यहां कनफ्यूजन वाली भाग-दौड़ है। गलतफहमी में होने वाली किडनैपिंग है। हैप्पी फिर भाग जाएगी में एक हैप्पी (सोनाक्षी सिन्हा) जरूर नई है लेकिन कॉमेडी पुरानी और उबाऊ है। पिछली बार शादी के मंडप से भाग निकलने वाली पुरानी हैप्पी (डायना पेंटी) अब गुड्डू (अली फजल) के साथ चीन में एक प्रोग्राम करने जाती है जबकि नई हैप्पी एक चीनी कॉलेज में पढ़ाने के लिए। पुरानी हैप्पी का अपहरण होना है परंतु किडनैप हो जाती है नई। गफलत से शुरू होने वाली फिल्म आगे बढ़ते हुए सिर्फ ऊब पैदा करती है क्योंकि स्क्रिप्ट लिखने वालों और निर्देशक ने कोई सिरा कस कर नहीं बांधा।
इक्का-दुक्का क्षणों को छोड़ें तो हैप्पी फिर भाग जाएगी एंटरटेन नहीं करती। कॉमेडी के नाम पर बेसिर-पैर की बातें और तुकबंदी टाइप के संवाद हैं। बासी अंदाज में ताजगी यही कि इस बार सारी भाग-दौड़ पिछली बार के पाकिस्तान के बजाय चीन में हो रही है। चीनी लोकेशन जरूर खूबसूरत हैं। पूरी फिल्म चीन में शूट हुई है। कहानी बताती है कि पंजाबी बड़े दिल वाले हैं जबकि चीनी चालाक हैं। इनसे पैदा होने वाली कॉमेडी को छोड़ दें तो हैप्पी फिर भाग जाएगी में कई दोहराव हैं। कई जगह लगता है कि निर्देशक ने कलाकारों को कहानी और किरदार बताने के बाद स्वतंत्र छोड़ दिया कि जो चाहे करें।
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फिल्म को खराब ढंग से लिखा गया है। कॉमेडी के नाम पर तुकबंदियों के साथ 60-70 के दशक पुराने फिसलन भरे सीन रचे गए हैं। रोमांस और इमोशन गायब हैं। थ्रिल भी नहीं है। ऐसे में हैप्पी फिर भाग जाएगी बुरी तरह निराश करती है। जिमी शेरगिल और पियूष मिश्रा के किरदार पिछली बार की तरह ही लाउड हैं। वे मुस्कान नहीं ला पाते। सोनाक्षी प्रभावित नहीं करतीं। केवल जस्सी गिल जरूर चीनी अंदाज में बोलते हुए थोड़ी राहत प्रदान करते हैं। बेहतर है कि हैप्पी की पुरानी कड़ी को ही फिर देख लिया जाए।
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