मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। डॉ. दिनेश यादव (निदेशक, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ और निदेशक, कृषि एवं प्राकृतिक विज्ञान संस्थान, प्रोफेसर जैव प्रौद्योगिकी विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में, डीएसटी-चूमेन साइंटिस्ट-बी डॉ. ऐमान तनवीर और शोधार्थी डॉ. सुप्रिया गुप्ता के शोध समूह ने कुछ बैक्टीरिया और फंगस को मिट्टी से अलग किया है, जो औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण बहु-पंजाइम उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। इस समूह ने कागज निर्माण में माइक्रोबियल एंजाइमों के उपयोग को एक सतत समाधान के रूप में विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
शोधकर्ताओं ने Aspergillus assiutensis नामक एक फंगस की पहचान की, जिसे दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के बॉटनिकल गार्डन की मिट्टी से प्राप्त किया गया। यह फंगस एक साथ कई एंजाइम उत्पन्न करने में सक्षम पाया गया, जो कचरे से प्राप्त कागज को पुनः उपयोग योग्य बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है। प्रयोगों से यह पता चला कि इस फंगस से प्राप्त एंजाइम मिश्रण का उपयोग कर पुराने मुद्रित कागज से स्याही को प्रभावी रूप से हटाया जा सकता है। आमतौर पर, कागज पुनर्चक्रण प्रक्रिया में स्याही हटाने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण होता है। लेकिन इस एंजाइम आधारित विधि से स्याही को पर्यावरण अनुकूल तरीके से हटाया जा सकता है और प्रक्रिया में उत्पन्न अपशिष्ट जल जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करता।
इस शोध को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका Diary of Natural Science and Contamination Inquire about (Springer) में प्रकाशित किया गया है। इसके अतिरिक्त, इस एंजाइम-आधारित डी-इंकिंग प्रक्रिया के लिए एक पेटेंट भी दायर किया गया है।
नवाचार और संभावनाएँ
शोधकर्ताओं ने एक बैक्टीरिया को भी अलग किया, जो बॉटनिकल गार्डन की मिट्टी से प्राप्त किया गया था। यह बैक्टीरिया भी बहु-एंजाइम उत्पन्न करता है, जिसका उपयोग फलों के रस की स्पष्टता बढ़ाने, तेल निष्कर्षण और प्राकृतिक रेर्शा के रेटिंग (softening) में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इस बैक्टीरिया से उत्पन्न एंजाइम पोल्ट्री उद्योग के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है, क्योंकि यह मुर्गी पालन से उत्पन्न पंर्खा के अपशिष्ट को आसानी से अपघटित करने में सक्षम है। इस शोध को Bioscience Biotechnology Investigate Asia पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
शोध समूह ने हस्तनिर्मित कागज निर्माण पर भी एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। हस्तनिर्मित कागज एक पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद होता है, जो अनूठी बनावट, रंग और एहसास प्रदान करता है। इसे सजावटी हैंडबैग, गिफ्ट फोल्डर आदि के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। लेकिन अधिकांश प्रसंस्करण इकाइयों रसायों का उपयोग करके हस्तनिर्मित कागज बनाती हैं। शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया से प्राप्त एंजाइम मिश्रण का उपयोग कर हस्तनिर्मित कागज निर्माण की एक टिकाऊ विधि विकसित की है। इसप्रक्रिया में गन्ने की खोई (बगास) और गेहूं की भूसी को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया गया। इस प्रकार, एंजाइम मिश्रण का उपयोग कृषि अपशिष्ट को मूल्यवर्धित उत्पादों में बदलने के लिए किया जा सकता है।
इस प्रक्रिया में, तैयार कागज में बीज भी सम्मिलित किए गए, जिससे पर्यावरण-अनुकूल स्टेशनरी तैयार की जा सकती है। यदि इस कागज को फेंक भी दिया जाए, तो इसमें मौजूद बीज पौधों में परिवर्तित हो सकते हैं और हरित आवरण (green cover) बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। शोध समूह अन्य अपशिष्ट सामग्रियों की भी तलाश कर रहा है, जिनका उपयोग हस्तनिर्मित कागज और शिल्प कार्यों में किया जा सके। इस तकनीक माध्यम से कुटीर उद्योगों की स्थापना की जा सकती है, जिससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और आम सूजन में सहायता मिलेगी। इस नवाचार के लिए भी एक पेटेंट दायर किया गया है।
अनुसंधान की मुख्य विशेषताएँ
Aspergillus assiutensis, Aeromonas talwanensis, और Bacillus subtilis फंगस
एवं बैक्टीरिया की पहचान की गई, जो मिट्टी से प्राप्त किए गए थे।
शोध कार्य Natural Science and Contamination Investigate, Cellulose और Biosciences. Biotechnology Investigate Asia जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ।
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इस शोध से संबंधित तीन पेटेंट दायर किए गए हैं।
यह एंजाइम-आधारित डी-इकिंग तकनीक कागज उद्योगों द्वारा अपनाई जा सकती है, जिससे पुनर्चक्रण प्रक्रिया अधिक पर्यावरण-अनुकूल हो सकती है।
इस शोध कार्य से “अपशिष्ट से संपदा (Squander to Riches) की अवधारणा को मूर्त रूप दिया गया है, क्योंकि अपशिष्ट कागज, गन्ने की खोई और गेहूं की भूसी से पर्यावरण अनुकूल हस्तनिर्मित कागज तैयार किया जा सकता है। इससे ग्रामीण महिलाओं के लिए कुटीर उद्द्योग स्थापित किए जा सकते हैं और उन्हें रोजगार मिल सकता है।
इस महत्वपूर्ण शोध पर कुलपति प्रो पूनम टंडन ने कहा
“अपशिष्ट से संपदा” की अवधारणा को प्रो. दिनेश यादव के नेतृत्व में जैव प्रौद्योगिकी विभाग की प्रयोगशाला में प्रभावी रूप से लागू किया गया है। कागज निर्माण में एंजाइम-आधारित नवाचार एक वास्तविक टिकाऊ समाधान है।”
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