2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबले के लिए यूपी में सपा-बसपा और रालोद ने गठबंधन कर लिया है. यहाँ तक कि तीनों दलों के बीच पश्चिमी यूपी में सीटों के बटवारे का फार्मूला भी तय हो चुका है. जिनमें से 3 सीटों पर आरएलडी अपने सिंबल पर चुनाव लड़ेगी. जबकि हाथरस की सीट पर सपा के सिंबल पर आरएलडी का प्रत्याशी लड़ेगा. वहीं पश्चिमी यूपी की 8 सीटों पर समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरेगा.
समाजवादी पार्टी के सूत्रों की माने तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का आजमगढ़ से चुनाव लड़ना लगभग तय हो गया है. ठीक उसी तरह बीएसपी सुप्रीमो मायावती का भी सहारनपुर से चुनाव लड़ने की ख़बर पक्की मानी जा रही है. दरअसल दोनों दलों के नेता सुरक्षित सीट के साथ-साथ ऐसी सीट पर दाव लगाना चाहते हैं, जहां का असर अगल-बगल वाली सीटों पर पड़े. ऐसे में आजमगढ़ और सहारनपुर, प्रदेश के दो इलाकों की ऐसी सीटें हैं जिनका असर दूर तक होगा.
उत्तर प्रदेश के मध्य में इटावा के आस-पास जहां यादव परिवार का गढ़ हैं, वहीं रायबरेली और अमेठी कांग्रेस का गढ़ है. बात करें आजमगढ़ की तो आजमगढ़ वो सीट है जिस पर सपा ने पिछली बार भी दाव लगाया था. मुलायम सिंह परंपरागत मैनपुरी सीट छोड़कर आजमगढ़ गए थे. प्रदेश में परंपरागत सीटों को छोड़ दें तो आजमगढ़ ऐसी अकेली सीट थी जहां सपा ने चुनाव जीता लेकिन वोटों का अंतर बहुत कम रहा. मुलायम सिंह यादव जैसा दिग्गज नेता सिर्फ 63204 वोटों से चुनाव जीत पाया लेकिन पार्टी नेताओं का मानना है कि इससे पार्टी को बहुत फायदा हुआ और पार्टी पूरब में कम से कम खाता खोलने में कामयाब रही और इस चुनाव में इसका विस्तार करेगी.
अखिलेश यादव को आजमगढ़ से चुनाव लड़ने का सुझाव देने वालों का तर्क है कि मोदी लहर में भी अगर ये सीट सपा ने जीती थी तो इस बार अगर अखिलेश यादव यहां से चुनाव लड़े तो इसका असर पूरे पूर्वांचल पर पड़ेगा. पश्चिम में गठबंधन के प्रभाव को मजबूत करने के लिए सहारनपुर से बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर दांव लगा रहे हैं. आरएलडी से गठबंधन के बाद दलित और जाट गठजोड़ के साथ अगर मुस्लिम मतदाता गठबंधन के साथ आता है तो ये सीट माया के लिए पूरी तरह सुरक्षित है.
सहारनपुर में बीएसपी पिछले लोकसभा चुनाव में भले ही नंबर तीन पर रही हो लेकिन तेरहवी और पन्द्रहवीं लोकसभा में ये सीट बीएसपी के खाते में रही है. माया को इस सीट से चुनाव लड़ने का सुझाव देने वालों का तर्क है कि इस सीट के बहाने गठबंधन मुस्लिम वोटों को अपने साथ लेने में कामयाब रहेगा क्योंकि इस सीट पर चुनाव लड़ने से ये संकेत जाएगा कि गठबंधन के नेताओं को पूरा भरोसा है कि मुस्लिम मतादाता उनके साथ है.
( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमेंफेसबुकपर ज्वॉइन करें, आप हमेंट्विटरपर भी फॉलो कर सकते हैं. )