जाने क्या है देवोत्थान एकादशी, तुलसी विवाह की कथा, श्री हरि विष्णु 4 माह की योग निंद्रा के बाद संभालते हैं कार्यभार

सोशल: हम सभी ने एकादशी के बारे में तो काफी सुना है, पर क्या हम इसके बारे ठीक से जानते हैं की इसे मनाने की वजह क्या है और क्यों हम इस दिन को इतना खास मानते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं इसे क्यों मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल एकादशी शुक्रवार के दिन देवोत्थान में मनाई जा रही है. इस दिन भगवान श्रीहरि चार महीने के निंद्रा से जागेंगे. जिसके साथ ही चातुर्मास व्रत का भी समापन किया जायेगा. हिंदू धर्म के लिए धर्मावलंबियों के शुभ मांगलिक कार्यों का भी शुभारंभ हो जायेगा. विवाह के शुभ मुहूर्त भी इस नवंबर से शुरू हो जाएंगे. माना जाता है की आषाढ़ शुक्ल हरिशयन एकादशी पर भगवान चार महीने के लिए शयन करने चले जाते और देवोत्थान एकादशी पर जागते हैं.


एकादशी के दिन भगवान को पूरे विधि-विधान के द्वारा सम्पूर्ण रूप से उनको जगाया जायेगा. सभी भक्त दिनभर श्रद्धालु उपवास में रहेंगे. भगवान की सेवा भक्ति के लिए उनको ईखों ( गन्ना ) का घर बनाया जाएगा. ईखों के द्वारा चार कोने का घर बनाया जाता है फिर एक लकड़ी के पीढ़े को रखा जाता है. पीढ़े पर भी अरिपन की जाएगी. शाम में इस पर शालिग्राम भगवान को रखकर उनकी पूजा की जाएगी. वेद मंत्रोच्चार के साथ भगवान को भक्त जगाएंगे. कम से कम पांच श्रद्धालु मिलकर भगवान को जगाएंगे.


तुलसी विवाह कथा-

तुलसी विवाह कथा के अंतर्गत यह विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन मनाया जाता है. इस बार तुलसी विवाह की दो तिथियां सामने आ रही है. कुछ विद्वानों का मत है कि तुलसी विवाह 8 नवंबर को है और कुछ का कहना है कि तुलसी विवाह 9 नवंबर को है. मान्यता है कि जो लोग कन्या सुख से वंचित होते हैं यदि वो इस दिन भगवान शालिग्राम से तुलसी जी का विवाह करें तो उन्हें कन्या दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है. इस दिन से लोग सभी शुभ कामों की शुरुआत कर सकते हैं. कथा के बिना तुलसी विवाह अधूरा है.


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कथा-
बहुत पुराने समय में जलंधर नाम का दुष्ट राक्षस रहता था, वृंदा नाम की एक लड़की से उसका विवाह हुआ. वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थी और दिन भर उनकी पूजा अर्चना करती रहती थी. वह अपने पति से भी बेहद प्रेम करती थी और उनके प्रति भी समर्पित थी.


वृंदा की भक्ति भगवान के प्रति इतनी गहरी थी कि उसके पति जलंधर को यह वरदान प्राप्त था कि उसे कभी कोई हरा नहीं पाएगा. वह अजेय रहेगा. यही वजह है कि जलंधर काफी अहंकारी और अत्याचारी हो गया था. यहां तक कि वह अप्सराओं और देव कन्याओं को भी तंग करने लगा था. स्वर्ग के सभी देवी-देवताओं ने इससे तंग आकर भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई.


देवताओं की अनुनय पर भगवान विष्णु ने जलंधर का झूठा रूप धारण कर भक्त वृंदा के पतिव्रत धर्म को तोड़ दिया. ऐसा होने से जलंधर काफी कमजोर हो गया और देवताओं के साथ युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन जब पति की मौत के शोक में व्याकुल वृंदा को जब भगवान विष्णु के इस छल का पता चला तब गुस्से में आकर उसने उन्हें शिलाखंड बन जाने का श्राप दे दिया.


लेकिन देवी देवताओं ने वृंदा से विनती की कि वे अपना श्राप वापस ले लें. वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया, लेकिन भगवान विष्णु ने अपनी भक्त वृंदा के श्राप का मान रखने के लिए एक पत्थर में अपना अंश प्रकट किया, इसे ही शालिग्राम कहा जाता है.


लेकिन पति वियोग से दुखी वृंदा का दुःख कम नहीं हुआ और श्राप देने और वापस लेने के बाद बाद भी वे अपने पति के शव के साथ सती हो गई. जहां वृंदा की चिता की राख थी, वहां पवित्र तुलसी का पौधा उत्पन्न हो गया. देवताओं ने पतिव्रता वृंदा का मान रखने के लिए तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के ही दूसरे रूप शालिग्राम से करवाया. जिस दिन ऐसा हुआ उस दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी थी. तभी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा चली आ रही है.


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कथा कुछ इस प्रकार है-

एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती है, कि स्वामी आप या तो रात-दिन जगते हैं या फिर लाखों करोड़ों वर्ष तक योग मुद्रा में ही रहते हैं. आपके ऐसा करने से संसार के समस्त प्राणी उस दौरान कई परेशानियों का सामना करते हैं, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप नियम के प्रति वर्ष निंद्रा लिया करें इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- देवी! तुम ठीक कह रही हो मेरे जागने के सब देवों को कष्ट होता है और खासकर तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता पाता तुम्हारे कथा अनुसार आज से मैं प्रति वर्ष 4 माह वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा. मेरी अनिद्रा अल्प निद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी. मेरी यह अल्प निद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी. इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में मैं आपके साथ निवास करूंगा. इस प्रकार भगवान विष्णु 4 माह वर्षा ऋतु में शयन करते हैं.


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