इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर से हटेगी मस्जिद, कोर्ट बोली- मस्जिद को हटा लें, नहीं तो इसे ध्वस्त कर दिया जाएगा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार (13 मार्च) को बड़ा फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High court) परिसर में बनी मस्जिद (Mosque) को तीन महीने के भीतर हटाने का आदेश दिया है. इससे पहले हाई कोर्ट ने 2018 में ही सार्वजनिक ज़मीन पर बनी इस मस्जिद को हटाने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को अब तीन महीने के भीतर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के परिसर से इस मस्जिद को हटाने का निर्देश दिया, जिसमें मस्जिद को हटाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं को बताया गया है कि इसकी संरचना एक समाप्त लीज वाली संपत्ति पर खड़ी थी और वे अधिकार के रूप में इसे जारी रखने का अब कोई का दावा नहीं कर सकते.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने हालांकि, याचिकाकर्ताओं को मस्जिद के लिए पास में किसी जमीन के आवंटन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को एक प्रतिवेदन करने की अनुमति दी. पीठ ने याचिकाकर्ताओं को बताया कि भूमि एक पट्टे की संपत्ति थी, जिसे समाप्त कर दिया गया था. वे अधिकार के तौर पर इसे कायम रखने का दावा नहीं कर सकते.

पीठ ने कहा, ‘हम याचिकाकर्ताओं द्वारा विचाराधीन निर्माण को गिराने के लिए तीन महीने का समय देते हैं और यदि आज से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो हाई कोर्ट सहित अधिकारियों के लिए उन्हें हटाने या गिराने का विकल्प खुला रहेगा.’

मस्जिद की प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से है और इसे यूं ही हटाने के लिए नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा, ‘2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया. नई सरकार बनने के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर की जाती है. जब तक वे हमें जमीन उपलब्ध कराते हैं, तब तक हमें वैकल्पिक स्थान पर जाने में कोई समस्या नहीं है.’ हाई कोर्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है.

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