मुकेश कुमार संवाददाता गोरखपुर एम्स गोरखपुर में डर्माकॉन 2025 में पेश हुआ महत्वपूर्ण शोध, संस्थान की कार्यकारी निदेशक ने दी बधाई
मेलाज्मा एक जटिल त्वचा रोग है, जिसमें चेहरे की त्वचा पर काले या भूरे रंग के धब्बे उभर आते हैं। यह केवल एक सौंदर्य समस्या नहीं है, बल्कि आत्मविश्वास में कमी और मानसिक तनाव का कारण भी बन सकता है। अब तक उपलब्ध उपचार महंगे और दीर्घकालिक हैं, फिर भी प्रभावी समाधान नहीं मिल पाया है।
एम्स गोरखपुर का शोध और निष्कर्ष
एम्स गोरखपुर के त्वचा रोग विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार गुप्ता के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन ने मेलाज्मा के कारणों और प्रभावी इलाज को लेकर नई जानकारी दी है। इस शोध में बायोकैमिस्ट्री विभाग के डॉ. शैलेंद्र द्विवेदी सह-अन्वेषक रहे। यह अध्ययन इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी (IADVL) रिसर्च ग्रांट से वित्त पोषित था और डर्माकॉन 2025 (जयपुर) में प्रस्तुत किया गया।
इस अध्ययन में 208 महिलाओं को शामिल किया गया, जिसमें यह पाया गया कि मेलाज्मा के मरीजों में मेलनोसाइट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (MITF) का स्तर काफी कम था, जिससे यह साबित हुआ कि यह सिर्फ अधिक मेलेनिन बनने से नहीं, बल्कि हार्मोनल और आनुवंशिक बदलावों से भी जुड़ा हुआ है।
शोध के प्रमुख निष्कर्ष:
✔ मेलाज्मा में इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के बीच असंतुलन की भूमिका हो सकती है।
✔ धूप के अलावा इनडोर लाइट भी मेलाज्मा को बढ़ा सकती है।
✔ पारंपरिक क्रीम और लेजर थेरेपी के साथ हार्मोनल और जेनेटिक ट्रीटमेंट पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
भविष्य के लिए संभावनाएं :
यह शोध मेलाज्मा के किफायती और प्रभावी इलाज की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। इसमें हर मरीज के हार्मोनल प्रोफाइल के अनुसार व्यक्तिगत इलाज देने पर जोर दिया गया है। प्रोजेस्टेरोन क्रीम या पैच जैसे टार्गेटेड ट्रीटमेंट अधिक कारगर हो सकते हैं।
संस्थान की कार्यकारी निदेशक (ED) मेजर जनरल प्रो. डॉ. विभा दत्ता ने इस शोध की सराहना करते हुए कहा,
“यह डर्माटोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। इससे मेलाज्मा के मरीजों को कम लागत में बेहतर उपचार मिल सकेगा। एम्स गोरखपुर के लिए यह गर्व का विषय है।”
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