प्रयागराज के बाद नासिक, हरिद्वार, उज्जैन अब कहाँ आयोजित होगा कुंभ मेला? जानिए पूरी जानकारी

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक 45 दिनों तक चले महाकुंभ मेले का समापन हो गया है। इस धार्मिक आयोजन में साधु-संतों और श्रद्धालुओं ने पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाई। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर इस बार 66 करोड़ श्रद्धालु पहुंचे। यह आयोजन एक अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संपन्न हुआ, जहां देश-विदेश से लोग आए।

अगला कुंभ कहाँ होगा?

26 फरवरी तक चलने वाला महाकुंभ मेला अब समाप्त हो गया है, 2027 में अगला महाकुंभ मेला महाराष्ट्र के नासिक में आयोजित होगा। यह मेला त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास 17 जुलाई से 17 अगस्त तक आयोजित होगा। नासिक में यह आयोजन 12 साल बाद होगा। पिछला सिंहस्थ कुंभ मेला 2015-16 में आयोजित किया गया था। नासिक में कुंभ मेला देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं, क्योंकि त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

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भारत के चार प्रमुख कुंभ मेला स्थल

भारत में चार प्रमुख स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित होता है। इन स्थानों पर कुंभ मेला हर तीन साल में आयोजित होता है। 12 साल में एक बार पूर्ण कुंभ, छह साल में अर्ध कुंभ और 12 साल में महाकुंभ मेला होता है। 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ हुआ, जो 144 साल बाद आयोजित हुआ।

  • प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर
  • हरिद्वार (उत्तराखंड) – गंगा नदी के किनारे
  • नासिक (महाराष्ट्र) – गोदावरी नदी के तट पर
  • उज्जैन (मध्य प्रदेश) – क्षिप्रा नदी के किनारे

अगले कुंभ मेलों की तारीखें

  • हरिद्वार: 2033 में अगला पूर्ण कुंभ मेला
  • नासिक: 2027 में कुंभ मेला
  • उज्जैन: 2028 में कुंभ मेला

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चार प्रमुख नदिया 

चार प्रमुख नदियों के किनारे कुंभ मेला भारतीय धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह भारत की चार प्रमुख नदियों के किनारे आयोजित होता है। इसमें लाखों श्रद्धालु बिना किसी निमंत्रण के शामिल होते हैं और पवित्र स्नान करते हैं। यह एक दिव्य और भव्य मेला है जो हर किसी के लिए एक अद्वितीय अनुभव होता है।

  • हरिद्वार: गंगा नदी
  • उज्जैन: क्षिप्रा नदी
  • नासिक: गोदावरी नदी
  • प्रयागराज: गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम

2027 में हरिद्वार में अर्ध कुंभ मेला

2027 में हरिद्वार में अर्ध कुंभ मेला आयोजित होगा। उत्तराखंड सरकार ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि इस बार कुंभ मेले के आयोजन के लिए संतों, साधुओं और धार्मिक संगठनों के साथ चर्चा की जाएगी, ताकि मेला व्यवस्थित और सफल हो।

कुंभ मेला के अखाड़े:

सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर कुंभ मेला में अखाड़ों का विशेष महत्व है। अखाड़े विभिन्न संप्रदायों के साधु-संतों का समूह होते हैं जो विशाल जुलूस में अमृत स्नान करते हैं। इन अखाड़ों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा करना था। पहले सिर्फ चार अखाड़े थे, लेकिन अब इनकी संख्या 13 हो गई है, जिनमें से सात अखाड़े भगवान शिव की पूजा करते हैं। बाद में किन्नर अखाड़े की भी स्थापना की गई।इन अखाड़ों की भव्यता और उनकी धार्मिक महिमा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हर अखाड़े की अपनी विशिष्टता और आस्थाएँ होती हैं, और ये सभी कुंभ मेला के समय एक अद्वितीय सांस्कृतिक मिलन स्थल बन जाते हैं।

मुख्य अखाड़े:

वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े:

  • निर्वाणी अनी अखाड़ा
  • निर्मोही अखाड़ा
  • दिगंबर अखाड़ा

शैव संन्यासी संप्रदाय के अखाड़े:

  • जूना अखाड़ा
  • अग्नि अखाड़ा
  • आवाहन अखाड़ा
  • महानिर्वाणी अखाड़ा
  • निरंजनी अखाड़ा
  • आनंद अखाड़ा
  • पंचायती श्रीशंभू अटल अखाड़ा
  • उदासीन संप्रदाय के अखाड़े
  • बड़ा उदासीन अखाड़ा
  • नया उदासीन अखाड़ा
  • निर्मल अखाड़ा

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